नई दिल्ली : CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ (CJI D.Y. Chandrachud) की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि केरल उच्च न्यायिक सेवा (Kerala Higher Judicial Service) के लिए चयनित उम्मीदवारों को पद से हटाना सार्वजनिक हित के विपरीत होगा, भले ही उनका चयन “अवैध” और “मनमाने” तरीके से किया गया हो।”
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, पी.एस. नरसिम्हा, पंकज मिथल और मनोज मिश्रा ने कहा कि राज्य और उसके नागरिकों को वरिष्ठ पद पर कार्यरत अनुभवी न्यायिक अधिकारियों के लाभ से वंचित करना सार्वजनिक हित में नहीं होगा।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि छह साल से अधिक समय बीत जाने के बाद याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायिक सेवाओं (Higher Judicial Services) में शामिल करने का निर्देश देना जनहित के विपरीत होगा।
सितंबर 2015 में एक अधिसूचना जारी की गई
शुरुआत में केरल उच्च न्यायालय द्वारा सितंबर 2015 में एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें कहा गया था कि “सफल उम्मीदवारों की मेरिट सूची लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा (Merit List Written Exam & Oral Test) में प्राप्त कुल अंकों के आधार पर तैयार की जाएगी” और इसमें कोई Cutoff नहीं होगा।
बाद में 2017 में मौखिक परीक्षा आयोजित होने के बाद उच्च न्यायालय की प्रशासनिक समिति ने एक प्रस्ताव पारित किया, जहां उसने मौखिक परीक्षा में योग्यता मानदंड के रूप में वही Minimum Cut-Off अंक लागू करने का निर्णय लिया, जो लिखित परीक्षा के लिए निर्धारित थे।
उच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अपेक्षित व्यक्तित्व और ज्ञान वाले उम्मीदवारों का चयन करना जरूरी है, जिसे लिखित परीक्षा के लिए निर्धारित कट-ऑफ के समान शर्तों के अनुसार मौखिक परीक्षा के लिए कट-ऑफ निर्धारित करके सुनिश्चित किया जा सकता है।
इसमें पाया गया कि लिखित परीक्षा (Written Exam) में अच्छा प्रदर्शन करने वाले उम्मीदवारों की भर्ती, भले ही मौखिक परीक्षा में उनका प्रदर्शन खराब रहा हो, बड़े पैमाने पर जनता के प्रति अहित होगा, क्योंकि उनके पास केवल “किताबी” ज्ञान था और व्यावहारिक ज्ञान की कमी थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाएं दायर कीं
पीड़ित उम्मीदवार, जिन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था, हालांकि उनकी रैंक चयनित कई उम्मीदवारों से अधिक थी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाएं दायर कीं।
यह मामला संविधान पीठ को यह तय करने के लिए भेजा गया था कि क्या चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद खेल के नियमों को बीच में बदलना कानूनन खुला है।
संविधान पीठ ने उस व्यापक संवैधानिक मुद्दे पर फैसला नहीं किया, जिसका उल्लेख किया गया था, लेकिन यह माना कि उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया निर्णय केरल राज्य उच्च न्यायिक सेवा विशेष नियम, 1961 के नियम 2 (सी) (iii) के अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
संविधान पीठ ने कहा…
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक संवैधानिक और सार्वजनिक प्राधिकरण (Constitutional and Public Authority) होने के नाते हाईकोर्ट को अपने प्रशासनिक कर्तव्यों का पालन करते समय अच्छे प्रशासन के सिद्धांतों को ध्यान में रखना होगा।
इसमें कहा गया है, “अच्छे प्रशासन के सिद्धांतों के लिए आवश्यक है कि सार्वजनिक प्राधिकरण निष्पक्ष, सुसंगत और पूर्वानुमानित तरीके से कार्य करें।”
संविधान पीठ ने कहा कि यदि लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा (Written Test and Oral Test) के अंकों के योग को ध्यान में रखा जाए तो याचिकाकर्ताओं की रैंक तीन उम्मीदवारों से अधिक होगी, लेकिन चयनित उम्मीदवारों को पद से हटाने पर ऐसी स्थिति पैदा होगी, जिसमें उच्च न्यायपालिका को जिला न्यायाधीश के पद पर पिछले छह वर्षों में अनुभव प्राप्त करने वाले विधिवत योग्य उम्मीदवारों की सेवाएं खो दी जाएंगी।