रांची : कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections) में कांग्रेस की बंपर जीत (Bumper Victory of Congress) के बाद उसका हौसला बुलंद है। दूसरे राज्यों में भी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के उत्साह में ऊर्जा महसूस की जा सकती है।
2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के लिए पार्टी भीतर से व्यापक तैयारी कर रही है। लेकिन, लाख टके का सवाल, क्या 2024 में कांग्रेस झारखंड में वर्ष 2004 को दोहरा पाएगी? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए सबसे पहले इस राज्य के इतिहास पर गौर करना होगा।
राज्य बनने के बाद प्रारंभिक हकीकत
वर्ष 2000 में भारत के नक्शे पर 28 वें राज्य के रूप में झारखंड का उदय हुआ था। उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के नेतृत्व वाली NDA की सरकार थी। स्वाभाविक तौर पर झारखंड अलग राज्य के गठन का श्रेय उनकी सरकार को जाता है।
सो, झारखंड निर्माण (Jharkhand Construction) के बाद वर्ष 2004 में जब पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए तो उम्मीद की जा रही थी कि इस नवगठित राज्य में अटल-आडवाणी की पार्टी यानी भाजपा को वोटरों का जमकर समर्थन मिलेगा, लेकिन हुआ ठीक इसके उलट।
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से भाजपा के हिस्से मात्र एक सीट आई। कांग्रेस-झामुमो-राजद और CPI ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और उन्होंने राज्य की 13 सीटों पर जीत दर्ज की।
साल 2004 में कांग्रेस का बेस्ट प्रदर्शन
साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अकेले कांग्रेस की झोली में छह सीटें आईं। यह इस राज्य में संसदीय चुनाव में कांग्रेस का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है। चुनावी उपलब्धि की इस लकीर को 2024 में लांघ पाना या फिर से छू पाना पार्टी के लिए आसान नहीं है।
वह भी तब, जब आज की तारीख में कांग्रेस राज्य की सत्ता में शामिल है। झारखंड की मौजूदा सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha) के बाद वह सबसे बड़ी साझीदार-हिस्सेदार है। पार्टी के चार विधायक हेमंत सोरेन की कैबिनेट में मंत्री हैं।
अभी कांग्रेस के 17 विधायक
वर्तमान में 82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly) में पार्टी के कुल 17 विधायक हैं। इसके पहले इस विधानसभा में कांग्रेस के पास कभी इतना संख्या बल नहीं रहा। यानी सत्ता-सियासत में हैसियत के नजरिए से यह उसके लिए मुफीद स्थिति है।
माना जा रहा है कि 2024 के चुनाव में साधनों-संसाधनों के लिहाज से पार्टी पिछले चुनावों की तुलना में बेहतर पोजिशन में होगी। लेकिन, सच यह भी है कि राज्य में पावर शेयरर होकर भी कांग्रेस की हनक एक सत्तारूढ़ पार्टी जैसी नहीं दिखती।
राज्य की गठबंधन सरकार ने पिछले साढ़े तीन साल में जितने भी बड़े फैसले लिए या बड़े काम किए, उसका श्रेय CM हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) के हिस्से में ही आया है। इस सरकार की ओर से राजनीतिक तौर पर मुफीद वही फैसले लिए गए या लिए जा रहे हैं, जो हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी चाहती थी।
सरकार के फैसलों में झामुमो का वर्चस्व
वर्तमान हेमंत सरकार (Hemant Sarkar) में देखें तो चाहे 1932 के खतियान पर आधारित डोमिसाइल पॉलिसी का स्टैंड हो या फिर SC-ST-OBC आरक्षण बढ़ाने का फैसला, राज्य में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए नियमावली हो या फिर कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन बहाली का मसला – तमाम फैसलों में हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी का निजी स्टैंड प्रभावी रहा।
हालांकि अदालत ने हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार के इन फैसलों में कुछ को खारिज कर दिया, लेकिन वह इनकी बदौलत अपने कोर वोटर्स को राजनीतिक तौर पर मजबूत संदेश देने में सफल रहे हैं।
कांग्रेस को दिखाने बताने के लिए क्या
वर्तमान में कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि वह 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस सरकार के कामकाज या फैसलों को अपनी उपलब्धियों के तौर पर गिना-बता सके। वजह यह है कि डोमिसाइल, परीक्षा नियमावली, भाषा आदि पर हेमंत सरकार के बड़े फैसले कांग्रेस के एजेंडे के अनुकूल नहीं थे।
अंदर की बात की हकीकत
कांग्रेस के विधायकों ने ऐसे कुछ फैसलों पर एतराज भी जताया था, लेकिन CM हेमंत सोरेन के आगे उनकी एक न चली। कांग्रेस के एक बड़े नेता निजी बातचीत में कहते हैं कि सोरेन सरकार में हमारी पार्टी की हैसियत रेलगाड़ी के इंजन (Train Engine) में लगी बोगी से ज्यादा नहीं।
राज्य सरकार के चार कांग्रेसी मंत्रियों का अपने विभागों में प्रदर्शन (Performance in Departments) चाहे जैसा रहा हो, लेकिन उनके कामकाज को लेकर पार्टी के नेता-कार्यकर्ता उत्साहित नहीं दिखते। इन मंत्रियों का पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर न तो दखल दिखता है, न ही कोई खास सक्रियता नजर आती है।
हालांकि पिछले साल पार्टी की ओर से चलाए गए सदस्यता अभियान में मंत्री बादल पत्रलेख (Badal Patralekh) ने अपने गृह जिले में सबसे अच्छा स्कोर किया था। पार्टी …