नई दिल्ली : गुरुवार को सूरत (Surat) के सेशन कोर्ट (Sessions Court) ने मोदी सरनेम (Modi Surname) वाले मामले में कांग्रेस (Congress) के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड के MP राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को 2 साल की सजा सुनाई है।
साथ ही जमानत (Bail) भी मिल गई है, लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि इस सजा की वजह से उनकी संसद सदस्यता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
सियासी गलियों (Political Streets) में यह चर्चा है कि अगर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आज से 10 साल पहले मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को न फाड़ा होता तो उनकी सदस्यता पर किसी भी तरह का संकट नहीं आता।
क्या कहता है कानून
जनप्रतिनिधि कानून (Representative Law) के अनुसार, अगर MPs और MLAs को किसी भी मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा हुई, तो उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा) रद्द हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा की अवधि पूरी करने के बाद 6 साल तक चुनाव (Election) भी नहीं लड़ पाएंगे।
साल 2013 में UPA ने पारित किया था अध्यादेश
मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के प्रधान मंत्री रहने के दौरान साल 2013 के सितंबर महीने में UPA सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था।
इसका मकसद उसी साल जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा पारित एक आदेश को निष्क्रिय करना था, जिसमें अदालत ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर MPs और MLAs की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।
कांग्रेस (Congress) द्वारा इस अध्यादेश को लाए जाने पर BJP, लेफ्ट समेत कई विपक्षी पार्टियों (Opposition Parties) ने कांग्रेस पर जमकर हमला करना शुरू कर दिया।
बता दें कि इसी समय RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) पर भी चारा घोटाले को लेकर अयोग्यता की तलवार लटक रही थी।
इसलिए राहुल ने फाड़ दिया था अध्यादेश
संसद में हंगामे के बीच कांग्रेस (Congress) ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस (Press Conference) बुलाई थी, जिसमें नेता अध्यादेश की अच्छाइयों को जनता को बताने वाले थे।
इसी बीच Rahul Gandhi कॉन्फ्रेंस में पहुंचे और उन्होंने अपनी ही सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि ये Ordinance पूरी तरह बकवास है और इसे फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने अध्यादेश की कॉपी को फाड़ दिया था।
फिर सरकार ने वापस लिया अध्यादेश
कांग्रेस (Congress) की ओर से जब ये Press Conference की गई थी, उस समय तत्कालीन PM मनमोहन सिंह USA के दौरे पर थे।
इस घटना के बाद राहुल गांधी ने Manmohan Singh को चिट्ठी लिखकर अपना पक्ष रखा था। बाद में अक्टूबर महीने में तत्कालीन UPA सरकार ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया था।