नई दिल्ली: मुंडका स्थित तीन मंजिला इमारत में शुक्रवार की शाम को लगी भीषण आग में मरने वालों की संख्या तीस हो गई। जिसमें से एक कंपनी मालिक वरुण और हरीश गोयल के पिता अमरनाथ भी है।
शनिवार को संजय गांधी अस्पताल में छह शवों की पहचान हो गई। लेकिन 29 लोग अभी भी लापता है। जिनके बारे में कहा जा रहा है कि ये सभी जिंदा नहीं बचे होंगे।
शवों में काफी ज्यादा ऐसे शव हैं,जिनको पहचान पाना मुश्किल है। जिनको डीएनए टेस्ट (DNA test) की सहायता से पहचाना जा सकता है। जिसको लेकर पुलिस एवं डॉक्टरों की टीम मिलकर यह प्रक्रिया जल्द ही शुरू कर देगी।
वहीं शनिवार को भी इमारत के मालिक मनीष लाकड़ा को पकड़ने के लिये दिल्ली पुलिस की टीमें कई जगहों पर छापेमारी करती रही। जिसके बारे में बताया जा रहा है कि वो अपने परिवार के साथ दिल्ली छोड़ चुका है।
NDRF का सर्च ऑपरेशन
एनडीआरएफ के डिप्टी कमांडर विकास ने बताया कि शनिवार को टीम ने सर्च ऑपेरशन शुरू किया था। कई जगह शव के अवशेष मिले हैं।
मरने वालों की पहचान और शरीर के अंगों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट कराया जाएगा। जब तक इमारत से सामान नहीं हट जाता है,तब तक ऑपरेशन चलता रहेगा।
उन्होंने बताया कि आग इमारत की पहली मंजिल से लगनी शुरू हुई, जहां सीसीटीवी कैमरा और राउटर निर्माता कंपनी कॉफे इम्पेक्स प्राइवेट लिमिटेड का दफ्तर था।
अमन बना आग लगने और अपनों को बचाने का गवाह
मुंडका का रहने वाला अमन हादसे के बाद उसको यह एक भयंकर सपने जैसा लग रहा है। उसका कहना है कि भगवान करे कि यह एक सपना ही हो, उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि जिन दोस्तों के साथ वह कंपनी में एक साथ बैठा हुआ था। आज वो उसके साथ नहीं हैं।
अमन ने बताया कि इस तीन मंजिला इमारत में पहले माले पर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है, दूसरे माले पर वेयर हाउस और तीसरे पर लैब है। सबसे ज्यादा मौत अब तक दूसरे माले पर ही हुई। दूसरे माले पर ही मोटिवेशनल स्पीच चल रही थी।
जिसको शुरू हुए कुछ ही देर हुई थी। जिसके करीब ढाई सौ लोग नये व पुराने मौजूद थे। उस वक्त बिजली गई हुई थी। हॉल का गेट बंद था।
मोटिवेशनल स्पीच को शुरू हुए करीब छह से सात मिनट से ज्यादा नहीं हुआ था। हॉल का गेट एयरकंडिशनर चलने की वजह से बंद कर दिया था। एयरकंडिशनर जनरेटर से चल रहा था। लेकिन कुछ ही देर बाद एक पटाखे जैसी आवाज सभी ने सुनी। जब वह गेट खोलकर बाहर की तरफ गया।
धुआं ही धुआं था। पहली मंजिल पर जाने वाली सीढियों के पास लगे बिजली के मीटर में आग लगी हुई थी। उस समय तक बड़ा हादसा होने की नहीं सोची थी। सभी को सुरक्षित निकालने के लिये ऊपरी मंजिल पर ले जाने की कोशिश की गई।
लेकिन वहां पर काफी ज्यादा धुंआ भर गया था। उसने पास पड़ी एक बड़ी बैटरी को उठाकर कांच की दीवार पर मार दिया। आग काफी तेजी से फैल रही थी।
सभी जान बचाने के लिये चिल्ला रहे थे। आवाज सुनकर गली में रहने वाले कई लडक़े सहायता के लिये आए। जिन्होंने एक क्रेन की सहायता से सीढी लगाई और रस्सी को नीचे से ऊपर फैंका।
उन्होंने रस्सी को एक तरफ बांधकर सभी को एक एक करके नीचे उतारने की कोशिश की। 50 से 60 लोगों को किसी तरह से बाहर निकाल भी था।,
लेकिन जब आग ने भीषण रूप ले लिया तो वह भी ऊपर से नीचे कूद गया था। वह अपने दोस्तों व बड़ों को नहीं बचा पाया।
उसको इस बात का जिंदगी भर अफसोस रहेगा। उससे उसके दोस्तों के परिवार वाले फोटो दिखाकर उनके बारे में जानकारी लेने की कोशिश कर रहे हैं। जो उस वक्त मेरे ही साथ थे।
मम्मी आग लग गई है, बचा सकते हो तो बचा लो-प्रीति
जे जे कॉलोनी बक्करवाला की रहने वाली 19 साल की प्रीति इमारत में आरओ और कैमरे आदी बनाया करती थी। वह कुछ ही वर्ष से काम करने के लिये निकली थी।
जब आग लगी उसने अपनी मां को किसी सहेली के फोन से फोन कर बोला था कि मम्मी आग लग गई है। हम सब फंस गए है। मुझे बचा सकते हो तो बचा लो। उसके बाद वह अपनी जान बचाने के लिये दूसरी मंजिल से नीचे कूद गई थी।
उसके कमर आदी में काफी ज्यादा गुम चोट लगी हैं। उसके उल्टे हाथ में गंभीर चोट लगी है। आलम यह है कि अब वो अपने सहेलियों सोनिया,सोनम और तानिया के नहीं मिलने से मानसिक रूप से परेशान हो रही है।
जबकि उसकी बड़ी बहन ज्योति जो शादीशुदा है। सोमवार को नौकरी के लिये जाने वाली थी,उसकी बात भी हो गई थी।
मैं ओर जिंदगी नहीं बचा पाया अफसोस है
बिल्ंिडग के बराबर में ही अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने वाले पवन कुमार ने बताया कि वह लेबर का काम करता है।
आग लगने के बारे में उसकी पत्नी ने फोन कर बताया था। वह मौके पर पहुंचा तो आग ने पूरी तरह से इमारत को घेर रखा था।
चिल्लाने की आवाजें ही आ रही थी। उसने तुरंत रस्सी ऊपर की तरफ फैंकी और लोगों को नीचे उसके सहारे उतारा था। कोई छलांग न लगा दे।
इसके लिये उसके साथ दर्जनभर गली के युवक उसके साथ खड़े थे। उन्होंने करीब बीस से 25 लोगों को रस्सी के सहारे नीचे उतारा जबकि करीब पन्द्रह सौलह लोगों को कैच किया। सभी को घरों में बैठाया और पानी पिलाकर उनको आश्वासन दिया।
क्रेन वाले की सहायता से बची करीब सौ जानें
इमारत सेटे घर में रहने वाले छात्र योगेश उसका भाई सुनील और चाचा का लडका देव उस वक्त वहीं पर था। उन्होंने इमारत से धुआं निकलता हुआ देखा था।
जिसके तुरंत बाद अपने अन्य साथियों के साथ इमारत के नीचे पहुंचे और दूसरी सड़क पर जा रही क्रेन चालक को मामले की जानकारी दी। जिसने बिना सोचे समझे क्रेन को मौके पर लाया। जिसपर सीढी लगाकर ऊपर रस्सा फैंका।
एक के बाद एक दर्जनों लोगों को बाहर काफी सावधानी से इमारत से बाहर निकाला था, जो बाहर निकला वो अपने और फंसे साथियों के घर पर फोन कर मामले की जानकारी दे रहा था।
उसी बीच अचानक से गली में एक बड़ा शीशे का टूकड़ा गिरा,जिससे शीशे की दीवार ढह गई। आग का गोला ऊपर तक फैल गया था।
आलम यह था कि बराबर की छत पर रखी दो पानी की टंकी भी जल गई थी। उस वक्त भी वो जिनका बाहर निकाल पाए। उन्होंने पूरी कोशिश की थी।
अंगूठी और जींस से पहचाना बहन के शव को
नांगलोई में रहने वाली दृष्टि एक साल से काम कर रही थी। उसकी कुछ समय पहले ही पंजाब के लुधियाना में सगाई भी हो गई थी।
वह दो भाई की इकलौती बहन थी। शाम के वक्त उसके भाई के पास उसी की सहेली ने फोन कर हादसे के बारे में जानकारी दी थी। जिसके बाद वे पूरी रात उसकी फोटो लेकर एक जगह से दूसरी जगह पर तलाशते रहे।
किसी ने कोई मदद नहीं की। लेकिन शनिवार दोपहर को संजय गांधी मोर्चरी में जब शवों को देखा तो दृष्टि की उंगली में पहनी सगाई की अंगूठी और जींस से उसकी पहचान हो पाई थी। उसका शरीर पूरा काला पड़ा हुआ था।
पति ने दिया था सालगिराह पर कड़ा उसी से हुई पहचान
40 वर्षीय मोहिनी करीब 10 सालों से सेल्स मैनेजर के तौर पर नौकरी कर रही थी। फरवरी महीने में उसकी सालगिरह थी।
उसके पति विजय पाल ने उसको उस दिन कड़ा भेंट में दिया था। जिसको वह हमेशा पहने रहती थी। शाम को जब हादसे के बारे में पता चला,परिवार वाले तुरंत मौके पर पहुंचे।
इमारत से लपटे उठती देखकर उन्होंने उसी वक्त उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन जिस तरह से कुछ अन्य कर्मचारी बचे।
उनको उम्मीद थी कि मोहनी बच गई होगी। पूरी रात अस्पताल के चक्कर काटते रहे और बाल बाल बचे कर्मचारियों से उसके बारे में पता करने की कोशिश करते रहे।
लेकिन कुछ नहीं पता चला था। शनिवार दोपहर को जब संजय गांधी अस्पताल की मोर्चरी में जाकर देखा,मोहिनी के कड़े से ही उसकी पहचान की।
सर्च ऑपरेशन के बीच पैर में आए पड़े थे शव व अवशेष-अतुल गर्ग
दमकल विभाग के निदेशक अतुल गर्ग ने बताया कि जब रात को ‘सर्च ऑपरेशन’ शुरू किया गया था। उस वक्त उनको पता चल गया था कि दूसरी मंजिल पर ही जानें गई हैं।
टीम ने काफी सावधानी से टॉर्चर लेकर सर्च ऑपरेशन शुरू किया था। जब वो उस मंजिल पर पहुंचे। वहां पर चप्पल,बाली,चैन, कड़े,फोन,शीशे के टूकड़े आदी सामान पड़ा था।
काफी ज्यादा खून के धब्बे भी पड़े हुए थे। उसके साथ साथ शव भी पड़े थे। जिनके शरीर पूरी तरह से काले पड़े थे। खाल भी जल गई थीं। शव इस हालत में नहीं थे कि उनको पूरा उठाया जा सके।
आग में पूरी तरह ही जल चुके थे। जिनको काफी सावधानी से बोरों में डाला गया और संजय गांधी अस्पताल की मोर्चरी में रखवा गया था।
इस बीच जब कर्मचारी उसी मंजिल पर जांच कर रहे थे। उनके पैरो में शवों के छोटे अवशेष आने लगे। जो पहचान में नहीं आ रहे थे,जिनको पहचानना नामुमकिन था। जिनको काफी सावधानी से बोरों में रखा गया था।