नयी दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
याचिका में इस अधिनियम को मनमाना कहा गया है।हाईकोर्ट (High Court) के कार्यवाहक चीफ जस्टिस विपिन संघी और जस्टिस नवीन चावला की खंडपीठ ने गुरुवार को विधि मंत्रालय तथा केंद्रीय वक्फ परिषद को नोटिस भेजा।
खंडपीठ ने इस याचिका को अन्य जनहित याचिकाओं के साथ मिलाकर सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई मुकर्रर की।
वक्फ अधिनियम 1995 संविधान के अनुच्छेद 12,13,14,15,21, और 300 ए का उल्लंघन है
याचिकाकर्ता एडवोकेट देवेंद्र नाथ शर्मा ने अपनी याचिका में कहा है कि वक्फ अधिनियम 1995 संविधान के अनुच्छेद 12,13,14,15,21, और 300 ए का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि केंदद्र सरकार के पास वक्फ के संबंध में कानून बनाने का अधिकार नहीं है।उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) के संबंध में निर्देश दिये जाने की भी मांग की, जिसके तहत नागरिकों की निजी संपत्ति को देखा जा सके।
याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत में धार्मिक वक्फ बोर्ड (Waqf Board) की संपत्तियां निजी मामला हैं और इसी कारण से उनका रखरखाव और प्रबंधन जनता के पैसे से नहीं किया जाना चाहिये।इससे पहले भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय भी यही मामला लेकर कोर्ट गये थे।
उन्होंने इस मामले में जनहित याचिका दायर करते हुये कहा था कि हिंदुओं, जैन, बौद्ध और अन्य समुदाय के पास अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड से बचाने का कोई तरीका नहीं है। उन्होंने दलील दी कि यह अधिनियम धार्मिक भेदभाव वाला है।