पटना: बिहार में गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो के राजनीतिक सफर पर चारा घोटाले ने ब्रेक लगा दिया। वे राजद सुप्रीमो बने रहे पर चुनावी राजनीति से 2009 के बाद से ही दूर चले गये।
लालू ने छात्र राजनीति से राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की थी। जेपी आंदोलन में शामिल होने के बाद उनका राजनीतिक कद धीरे-धीरे बढ़ता गया।
राजनीतिक व्यवस्था में अंतिम व्यक्ति को आगे करने की कोशिश में वे लगातार राजनीतिक सीढियां चढ़ते गए। लालू ने 1980 में लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाई।
चुनाव हारने के बाद उन्होंने हार नहीं मानी और राज्य की राजनीति में सक्रिय हो गए। वे उसी साल बिहार विधानसभा चुनाव में शामिल हुए और निर्वाचित होकर विधानसभा सदस्य बन गए।
उन्होंने 1985 में दोबारा चुनाव जीता। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद विपक्ष के कई वरीय नेताओं को दरकिनार करते हुए वे 1989 में विधानसभा में विरोधी दल के नेता बन गए।
मगर उसी वर्ष उन्होंने फिर छपरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में किस्मत आजमाई और सफल हो गए। अब 1989 के भागलपुर दंगे के बाद कांग्रेस के वोट बैंक के रूप में मानी जाने वाली यादव जाति के एक मात्र नेता लालू प्रसाद हो गए।
मुसलमानों का भी उन्हें व्यापक समर्थन था। तब वे वीपी सिंह के साथ हो लिए और मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने में लग गए।
आडवाणी की रथयात्रा रोकी तो मिली अंतरराष्ट्रीय ख्याति
1990 में लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। 23 सितंबर, 1990 को उन्होंने राम रथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कराया और खुद को धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया।
तब आडवाणी की गिरफ्तारी से लालू को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। उस दौरान पिछड़े समाज को राजनीति में हिस्सा दिलाने में उनकी महती भूमिका थी।
लिहाजा 1995 में वह भारी बहुमत चुनाव जीते और राज्य में दोबारा सीएम बने। इसी दौरान जुलाई 1997 में शरद यादव से मतभेद होने के कारण उन्होंने जनता दल से अलग राष्ट्रीय जनता दल का गठन कर लिया।
दोबारा सत्ता में आते ही चारा घोटाला उजागर होने लगा
लालू प्रसाद के दोबारा सत्ता में आते ही चारा घोटाला उजागर होने लगा। कोर्ट के आदेश पर मामला सीबीआई को गया और सीबीआई ने 1997 में उनके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल कर दिया।
उसके बाद लालू को सीएम पद से हटना पड़ा। उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर चारा घोटाले में जेल चले गए। उसी अवधि में समर्थकों ने लालू प्रसाद को ‘बिहार के नेल्सन मंडेला’ तो विरोधियों ने चारा ‘चारा चोर’ की उपाधि दे दी।
2005 में हाथ से गई सत्ता
वर्ष 1998 में केंद्र की सरकार में भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी आ गए। वर्ष 2000 में राजद बिहार विधानसभा चुनाव में अल्पमत में आ गया।
नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन उन्होंने सात दिनों में ही इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पुन: राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी।
उन्हें समर्थन देने वाले सभी 22 कांग्रेस विधायक उनकी सरकार में मंत्री बनें लेकिन 2005 में राजद चुनाव हार गयी और पुन: बिहार की सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार ने संभाली। राज्य में लालू के हाथ से सत्ता दूर हो गयी।
हालांकि, 2004 में किंगमेकर की भूमिका में रहे लालू यूपीए-वन सरकार में रेल मंत्री बने। वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव में राजद के मात्र चार सांसद निर्वाचित हुए।
इसलिए उनकी पार्टी को केंद्र में जगह नहीं मिला। लालू हर बात को निराले और गंवई अंदाज में पेश करते हैं। इसी शैली के कारण संसद में उनका दिया गया भाषण भी चर्चा में रहता।
बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे में कुल्हड़ की शुरुआत, लालू हमेशा ही सुर्खियों में रहे। इस अवधि में इंटरनेट पर लालू के लतीफों का दौर जो शुरू हुआ आज तक बंद नहीं हुआ।