नई दिल्ली : देश की न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि उसे चुनावी प्रक्रिया में दखल देने का पूरा अधिकार है। एक मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि शीर्ष अदालत चुनाव या उससे जुड़ी प्रक्रिया में दखल नहीं देती। लेकिन, ये अंतिम सत्य नहीं है। कोर्ट ने बताया कि दखल कब हो सकता है।
जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने कहा कि अगर कोई अफसर गलत करता दिखता है तो कोर्ट का दायित्व है कि वो ऐसे मामले में दखल दे।
बेंच ने कहा कि लोकतंत्र को बहाल रखने के लिए सबसे जरूरी प्रक्रिया चुनाव होती है। चुनाव के जरिये ही जन प्रतिनिधि चुने जाते हैं। उनके जरिये एक सरकार बनती है जो देश या किसी सूबे को चलाती है।
इस सारे मसले में सबसे अहम चीज चुनाव है। चुनाव अगर निष्पक्ष तरीके से होते हैं तो जनता के जरिये चुना हुआ प्रतिनिधि संसद या विधानसभा में पहुंचता है। लेकिन अगर चुनावी प्रक्रिया को आधिकारिक स्तर पर प्रभावित करने की कोशिश की जाती है तो कोर्ट मूक दर्शक बनकर नहीं रह सकती। ऐसे में उसे चुनावी प्रक्रिया में दखल देना ही होगा।
51 पन्नों के आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कांफ्रेंस के चुनाव चिन्ह से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान ये बात कही। डबल बेंच ने नेकां को हल निशान के लिए हकदार बताया था। कोर्ट ने नेकां को यह निशान आवंटित करने का विरोध कर रहे लद्दाख प्रशासन की याचिका बुधवार को खारिज कर दी थी।
उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। 51 पन्नों के आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो चुनावी प्रक्रिया में दखल दे सकता है।
टॉप कोर्ट की टिप्पणी के बाद लद्दाख चुनाव विभाग ने करगिल में स्थानीय निकाय चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस को हल निशान देते हुए नई अधिसूचना जारी की। नए आदेश के मुताबिक कारगिल में स्थानीय निकाय चुनाव अक्टूबर में कराया जाएगा। शीर्ष अदालत की नाखुशी के बाद ही ये फैसला आया।