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ज्ञानवापी और श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद : अदालत के फैसले पर टिकी हैं भाजपा और संघ की निगाहें

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद(Gyanvapi Mosque of Varanasi) में किए गए सर्वे के तथ्यों के सामने आने और मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर अदालत द्वारा सुनवाई शुरू करने के बाद से ही इन दोनों मुद्दों को लेकर भाजपा और संघ के आधिकारिक रूख पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।

अयोध्या में रामजन्मभूमि मुद्दें को लेकर जिस तरह से आरएसएस, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद ने देश भर में अभियान चलाया था और बड़ा आंदोलन खड़ा किया था, उस इतिहास को देखते हुए ही सब खासतौर से हिंदू और मुस्लिम पक्ष के लोग भाजपा और आरएसएस के रूख का इंतजार कर रहे हैं कि वो इस मसले पर क्या करने जा रहे हैं ?

सबसे पहले बात करते हैं, आरएसएस(RSS) के रूख की। अयोध्या विवाद को लेकर जब नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था उस समय मथुरा और काशी को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि संघ ऐतिहासिक कारणों की वजह से रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़ा था और यह अपवाद के तौर पर ही था।

संघ अब मानव विकास को लेकर काम करेगा

उस समय भागवत ने कहा था कि संघ अब मानव विकास को लेकर काम करेगा। लेकिन ज्ञानवापी जैसे भारतीय संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दें पर संघ चुप भी नहीं रह सकता था।

शायद इसलिए इस अहम मसले पर बोलने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर स्वयं सामने आए।

बुधवार को नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आंबेकर ने कहा कि, ज्ञानवापी को लेकर कुछ तथ्य है जो सामने आ रहे हैं। मेरा मानना है कि तथ्य को सामने आने देना चाहिए।

किसी भी स्थिति में सच्चाई सामने आएगी ही। आप कितने समय तक सच को छिपाएंगे। ऐतिहासिक तथ्यों को सही परिप्रेक्ष्य में समाज के सामने आना ही चाहिए।

साफ जाहिर है कि संघ, ज्ञानवापी में हुए सर्वे की पूरी सच्चाई सामने आने के अभियान का समर्थन कर रहा है लेकिन इसके साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि फिलहाल संघ इसे लेकर कोई बड़ा अभियान या आंदोलन छेड़ने नहीं जा रहा है।हालांकि काशी और मथुरा दोनों मामलों में संघ की नजर अदालत के फैसले पर बनी हुई है।

काशी और मथुरा दोनों मामलों में संघ की नजर अदालत के फैसले पर बनी हुई

इसी कार्यक्रम में सुनील आंबेकर की मौजूदगी में बोलते हुए उत्तर प्रदेश के भाजपा से लोकसभा सांसद और मोदी कैबिनेट के Minister Sanjeev Balyan ने ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने की बात कहते हुए भाजपा की भावना को साफ-साफ सामने रख दिया। लेकिन भाजपा की निगाहें भी अदालत की कार्यवाही और फैसलों पर टिकी हुई है।

ज्ञानवापी को लेकर भाजपा की रणनीति के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ल ने कहा कि अयोध्या, काशी और मथुरा विश्व हिंदू परिषद का एजेंडा रहा है और भाजपा ने 1989 के पालमपुर अधिवेशन में सिर्फ रामजन्मभूमि आंदोलन का खुल कर समर्थन करने का फैसला किया था।

शेष दोनों मुद्दे विहिप का एजेंडा हैं और उन्हे ही तय करना है कि वो इन पर क्या करें। इसके साथ ही उन्होने यह भी कहा कि मामला अदालत में है और अदालत ही इस पर फैसला करेगी।

भाजपा और सरकार के रूख को स्पष्ट तौर पर जानने-समझने के लिए आईएएनएस ने एक जमाने मे कल्याण सिंह के काफी करीबी रहे और वर्तमान मोदी सरकार में पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास एवं सहकारिता राज्य मंत्री के तौर पर कार्य कर रहे बीएल वर्मा के साथ बातचीत भी की।

बीएल वर्मा ने यह साफ-साफ कहा कि जिस तरह से वहां शिवलिंग (ज्ञानवापी में) और हिंदू संस्कृति के अन्य चिन्ह मिले हैं, उससे सब अपने आप स्पष्ट हो जाता है।

हिंदू संस्कृति के अन्य चिन्ह मिले हैं

हम सब जानते हैं कि हमारा देश लंबे समय तक मुगलों के अधीन रहा, यहां बाबर जैसे आक्रांता आए, उनके और लोग आए जिन्होंने हमारी संस्कृति को मिटाने की कोशिश की, मंदिरों को तोड़ा जिसमें अयोध्या और काशी भी शामिल थे।

तो भाजपा क्या करेगी? आईएएनएस के इस सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अब सत्य सामने आ गया है, मामला अदालत में है और इस मामले में अदालत का निर्णय भी सकारात्मक आने की ही उम्मीद है।

हम सबको अदालत के फैसले का इंतजार और सम्मान करना चाहिए।प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 में बदलाव लाने या इसे समाप्त करने को लेकर पूछे गए सवाल पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भाजपा सरकार संवैधानिक तरीके से कार्य करती है।

देश हित में जो सही होता है और जो नियमानुसार संवैधानिक तरीके से हमारी सरकार को करना चाहिए वो हमारी सरकार करती है।

सूत्रों की मानें तो भले ही भाजपा के कई नेता, सांसद-विधायक और यहां तक की केंद्रीय मंत्री भी इन मामलों पर बढ़-चढ़कर बयान दे रहे हों, लेकिन भाजपा और केंद्र सरकार को अदालती कार्यवाही पर पूरा भरोसा है इसलिए उनकी नजरें अदालत के फैसलों पर टिकी हुई हैं।

भाजपा अयोध्या की तरह ही इन दोनों विवादित स्थलों पर अदालत के फैसले का इंतजार कर रही है।अब बात करते हैं, आरएसएस से जुड़े संगठन विश्व हिंदू परिषद की।

विश्व हिंदू परिषद(Vishwa Hindu Parishad) यानि विहिप ने अयोध्या आंदोलन को देशव्यापी मसला बनाकर इसे एक मुकाम तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी और इसलिए इस बार भी सबकी निगाहें विहिप पर टिकी हुई हैं।

विहिप के इतिहास और रूख को देखते हुए यह माना जा रहा है कि यह संगठन इन दोनों विवादित स्थलों को लेकर भी अभियान शुरू कर सकता है। हालांकि यह अभियान कैसा होगा?

इसका स्वरूप और क्षेत्र कैसा होगा? इसमें क्या मांग की जाएगी ?- जैसे तमाम सवालों पर यह संगठन अपने आगामी बैठकों में विचार कर फैसला करेगा।

11 और 12 जून को हरिद्वार में विहिप साधु-संतों के निर्देश और मार्गदर्शन में संगठन अपना स्टैंड निर्धारित करेगा

आईएएनएस से बातचीत करते हुए विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने बताया कि इस महीने के अंत में कांची में विहिप के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी और अगले महीने, 11 और 12 जून को हरिद्वार में विहिप के मार्गदर्शक मंडल की बैठक में साधु-संतों के निर्देश और मार्गदर्शन में संगठन अपना स्टैंड निर्धारित करेगा और उसी अनुसार भविष्य की कार्ययोजना भी।

हालांकि काशी और मथुरा मामले में पूरी तरह से हिंदू पक्ष के साथ खड़े होते हुए आलोक कुमार ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 पर पुनर्विचार करने की मांग को लेकर यह भी साफ कर दिया कि 1991 में इस कानून को जल्दबाजी में बनाया गया, इस पर न तो समाज में कोई चर्चा हुई और न ही इसे संसद की सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया।

उस समय भारतीय जनता पार्टी ने इस बिल का प्रखर विरोध किया था। इस कानून की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के चल रहे मामले का जिक्र करते हुए आलोक कुमार ने यह साफ-साफ कहा कि यह कानून कोई पत्थर की लिखी लकीर नहीं है और इसके प्रावधानों पुनर्विचार होना चाहिए।

दरअसल, आरएसएस, भाजपा और विहिप तीनों ही संगठन इन दोनों विवादित मुद्दों पर अदालत के फैसले का इंतजार और सम्मान करने की बात कर रहे हैं। लेकिन यह भी तय है कि आने वाले दिनों में विहिप इस मसले पर बहुत ही आक्रामक तरीके से अभियान चलाता हुआ नजर आएगा।

हालांकि इस अभियान की शक्ल क्या होगी, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा लेकिन यह तो तय है कि आने वाले दिनों में देश में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की प्रासंगिकता और उपयोगिता को लेकर बहस शुरू होने जा रही है और इसे बदलने या हटाने को लेकर बड़ा अभियान भी शुरू हो सकता है।

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