हजारीबाग: खराब मौसम विशेषकर आकाश में बादल छाए रहने के कारण इक्विनोक्स के दिन शनिवार को जिले के बड़कागांव के पकरी बरवाडीह में मेगालिथिक पत्थरों के बीच से अद्भुत सूर्योदय का नजारा नहीं देखा जा सका।
हालांकि, दर्जनों लोग अद्भुत सूर्योदय का नजारा देखने मेगालिथिक स्थल पर पहुंचे हुए थे। वे सभी निराश हुए।
यह अलग बात है कि प्रीति और कैलाश कुमार राणा सहित कई अन्य ने कहा कि कल सुबह पुनः इस मेगालिथिक साइट पर पहुंच कर दो मेगालिथिक पत्थरों के बीच से इक्विनॉक्स के सूर्योदय का अद्भुत नजारा देखने का प्रयास करेंगे।
इस साइट को समाज के सामने लाने वाले शुभाशीष दास ने कहा कि यह मेगालिथिक पत्थर न केवल आदिवासियों की मौत के बाद उनके निधन के समय पत्थर लगाने या गाड़ने की परंपरा का प्रतीक है।
बल्कि यह मेगालिथिक पत्थर साबित करते हैं कि उस समय भी सूर्य और पृथ्वी के पारगमन (खगोल) का ज्ञान आदिवासियों को था।
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि पकरी बरवाडीह में दोनों पत्थर इस तरह लगाए गए हैं कि इक्विनोक्स के दिन सूर्योदय का अद्भुत नजारा यहां दिखता है।
दोनों पत्थरों के बीच से सूर्योदय होते देखा जाता है। शुभाशीष दास ने कहा कि यह आदिवासियों की ज्ञान परंपरा की एक धरोहर है। इससे साबित होता है कि आदिवासी सूर्य के पारगमन की जानकारी रखते थे।
उन्होंने चिंता जताई कि जिस प्रकार से मेगालिथिक साइट के बगल में हाईवा के लिए स्टैंड बना दिया गया है और क्षेत्र में माइनिंग हो रही है, उससे आने वाले समय में इस मेगालिथिक साइट के समाप्त होने की आशंका है।
उन्होंने कहा कि ऐसा ही साइट हजारीबाग के रोला में भी था लेकिन वहां भी यह समाप्त हो गया।
दक्षिण में कर्नाटक में ऐसा ही साइट दिखता है। शुभाशीष दास कहते हैं कि पकरी बरवाडीह का मेगालिथिक स्थल करीब 3000 वर्ष पुराना है और यह आदिवासियों की एस्ट्रोनॉमी की जानकारी (सूर्य के पारगमन की जानकारी) को प्रमाणित करता है।
ऐसे में इस साइट के संरक्षण की जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर यह अति महत्वपूर्ण स्थान और उसकी ऐतिहासिकता समाप्त हो जाएगी।