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झारखंड हाई कोर्ट में कोर्ट फीस अमेंडमेंट एक्ट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर हुई सुनवाई

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रांची: झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के चीफ जस्टिस (Chief Justice) डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में गुरुवार को झारखंड स्टेट बार काउंसिल (Jharkhand State Bar Council) द्वारा राज्य सरकार (State government) की कोर्ट फीस अमेंडमेंट एक्ट (Amendment Act) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।

इस दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा शपथ पत्र में स्पष्ट जानकारी नहीं दिए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई।

अगली सुनवाई 15 दिसंबर

राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि कोर्ट फीस को लेकर बनाई गई तीन सदस्य वाली कमेटी की अनुशंसा के आधार पर बिल बनकर तैयार हो गया है।

इसे वित्त विभाग (Finance Department) में भेजा गया है, वहां से अप्रूवल होने के बाद इसे कैबिनेट कमेटी (Cabinet Committee) के पास अप्रूवल के लिए भेजा जाएगा, जहां से विधानसभा (Assembly) में इसे पास होने के लिए भेजा जाएगा।

कोर्ट ने मामले में कुछ बिंदुओं पर राज्य सरकार को शपथ पत्र दाखिल करने के लिए समय दिया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर निर्धारित की। सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी वरीय अधिवक्ता वीपी सिंह उपस्थित थे।

पूर्व की सुनवाई में कोर्ट को बताया गया था कि नए कोर्ट फीस कानून (Court Fees Law) में 2 अनुसूची है, जिसमें समिति ने केवल अनुसूचित एक (निचली अदालतों में दिए जाने वाले कोर्ट फीस) के बारे में ही अनुशंसा की है, जो हाई कोर्ट (High Court) की कोर्ट फीस से संबंधित है उसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा है।

इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा था कि नए कानून के हिसाब से अगर कोर्ट फीस वसूल किया जाता है तो वह केस के अंतिम निर्णय से प्रभावित होगा।

याचिकाकर्ता (the Petitioner) की ओर से कहा गया था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा वृद्धि सरकार द्वारा इस कानून के माध्यम से की गई है। कोर्ट फीस वृद्धि से पहले आवश्यक पहलू की जांच नहीं की गई।

सेंट्रल कोर्ट फीस एक्ट

उल्लेखनीय है कि पूर्व की सुनवाई में राजेंद्र कृष्ण (Rajendra Krishna) ने मामले में पैरवी करते हुए कोर्ट से कहा था कि कोर्ट फीस में बेतहाशा वृद्धि से समाज के गरीब तबके के लोग कोर्ट नहीं आ पाएंगे और वकीलों को भी अतिरिक्त वित्तीय भार का वहन करना पड़ेगा।

काउंसिल (Council) ने यह भी कहा है कि कोर्ट फीस की वृद्धि से लोगों को सहज और सुलभ न्याय दिलाना संभव नहीं है। राज्य सरकार का कोर्ट फीस एक्ट (Court Fees Act) गलत है। यह संविधान के खिलाफ है। साथ ही यह सेंट्रल कोर्ट फीस एक्ट के भी विरुद्ध है।

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