जम्मू: जम्मू और कश्मीर के सांबा जिले में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास गुरुवार को ऐतिहासिक बाबा चमलियाल मेला (Baba Chamliyal Fair) शुरू हो रहा है। COVID-19 महामारी के कारण इसका आयोजन पिछले दो सालों से नहीं हो पाया था।
मेला समिति के अध्यक्ष बिल्लू चौधरी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से दो लाख से अधिक भक्तों की दर्शन करने के लिए सांबा जिले के रामगढ़ सेक्टर में स्थित संत के मंदिर पहुंचने की संभावना है।
चमलियाल सीमा चौकी पर बाबा दलीप सिंह मन्हास (Baba Dalip Singh Manhas) की दरगाह है। इतिहास के अनुसार, संत बाबा दलीप सिंह मन्हास चमलियाल नामक गांव में रहते थे।
वह प्यासे यात्रियों को पीने का पानी देते थे और जरूरतमंदों के कल्याण के लिए भी काम करते थे। वह भाईचारे में विश्वास रखते थे। अपने अच्छे कामों के कारण ही वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुए।
उनकी लोकप्रियता से कुछ लोग जलते थे, जिन्होंने बाबा के खिलाफ साजिश रची और उन्हें सैदावाली गांव में मार डाला, जो अब पाकिस्तान में स्थित है।
बाबा दलीप सिंह का सिर उनकी हत्या के स्थान से काफी दूर जाकर गिरा, जबकि उनका शेष शरीर सैदावली में पड़ा रहा।
बाबा की मुकद्दस मजार पर हर साल लगता है मेला
लोगों ने भारत और पाकिस्तान की सीमा पर उनके स्मारकों का निर्माण करके बाबा के दर्शन और प्रथाओं को जीवित रखने का फैसला किया।
बाबा की मृत्यु के बाद, क्षेत्र के लोगों ने उनके नाम पर दो मंदिरों का निर्माण किया। जिस स्थान पर उनका सिर गिरा था उस स्थान पर एक तीर्थ बना था। बाबा का एक और मंदिर पाकिस्तान के सैदावली (Saidawali) में बनाया गया था जहां उनकी हत्या कर दी गई थी।
बाबा को मानने वाले दोनों जगह भारत और पाकिस्तान में मेले आयोजित करते थे, लेकिन विभाजन के बाद सैंदावली को चमलियाल से अलग कर दिया गया। पर बाबा की याद में मेले की रिवायत दोनों तरफ जारी। बाबा की मुकद्दस मजार पर हर साल मेला लगता है।
पाकिस्तानी रेंजर्स पहले चादर चढ़ाने, प्रसाद के तौर पर शक्कर और शरबत लेने के लिए दरगाह आते थे।
हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण, पाकिस्तानी रेंजर्स (Pakistani Rangers) इस साल दरगाह नहीं आएंगे