प्रयागराज: वाराणसी (Varanasi) में ज्ञानवापी (Gyanvapi) स्थित श्रृंगार गौरी की पूजा की अनुमति देने के खिलाफ याचिका (Petition) की सुनवाई जारी है।
इस मामले में हिंदू पक्ष की बहस शुक्रवार को पूरी हो गई। अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (Anjuman Arrangement Masjid Committee) की याचिका की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के जस्टिस (Justice) जेजे मुनीर कर रहे हैं।
हिंदू पक्ष की तरफ से जो दलीलें दी गई उसमें स्कंद पुराण से लेकर औरंगजेब (Aurangzeb) तक का जिक्र किया गया है।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन ने कहा कि मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद वह स्थान उसके स्वामित्व में आ जाता है।
हिंदू विधि के अनुसार ध्वस्त होने के बाद भी अप्रत्यक्ष मूर्ति का अस्तित्व बना रहता है। उन्होंने कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया। वास्तव में वह मस्जिद है ही नहीं।
वह मंदिर का हिस्सा है। क्योंकि जहां तीनों गुंबद मौजूद हैं वहीं पर ध्वस्तीकरण (Demolition) के समय श्रृंगार गौरी हनुमान व कृति वासेश्वर महादेव की मूर्ति थी जो स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर नाथ मंदिर का हिस्सा था।
आलमगीर मस्जिद ज्ञानवापी से तीन किलोमीटर दूरी पर है
जैन ने कहा कि समवर्ती सूची के विषय में केंद्र व राज्य के बने कानून में अनुच्छेद 254(2)के तहत राज्य का कानून प्रभावी माना जाएगा।
राज्य विधानसभा (State Assembly) द्वारा पारित यूपी काशी विश्वनाथ एक्ट (Kashi Vishwanath Act) प्लेसेस आफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) पर प्रभावी होगा। काशी विश्वनाथ एक्ट में ज्ञानवापी परिसर पर विश्वनाथ मंदिर का स्वामित्व है।
कानून पूजा के सिविल अधिकार के लिए सिविल कोर्ट (Civil Court) को सुनवाई का अधिकार देता है। वक्फ बोर्ड या वक्फ अधिकरण को इस संबंध में कोई अधिकार नहीं है।
वहीं वादी राखी सिंह की तरफ से अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने स्कंद पुराण का उल्लेख करते हुए कहा कि पंचकोसी परिक्रमा मार्ग में आने वाले मंदिरों का उल्लेख है। उनकी पूजा का विधान भी है।
श्रृंगार गौरी की पूजा ज्ञानवापी में स्नान कर किए जाने का उल्लेख है। उन्होंने विवादित ढांचे की तस्वीर पेश कर कहा देखने से मंदिर है जिसकी दीवार पर गुंबद तैयार किया गया है।
मंदिर के अवशेष अभी भी बरकरार है। नवंबर 1993 तक श्रृंगार गौरी की पूजा हो रही थी। जिला प्रशासन (District Administration) ने पूजा रोक दी है।
पुराण में जहां तीनों गुंबद है उसके नीचे मूर्तियां थीं। वह मंदिर का हिस्सा है। वहां कोई मस्जिद नहीं है। औरंगजेब ने तीन मस्जिदें बनाई थी वह भी मंदिर तोड़कर।
आलमगीर मस्जिद ज्ञानवापी से तीन किलोमीटर दूरी पर है। ज्ञानवापी मस्जिद को आलमगीर मस्जिद कहना सही नहीं है। परिक्रमा मार्ग में 11 मंदिरो में पूजा का उल्लेख है जिसमें श्रृंगार गौरी व कृतिवासेश्वर के पूजन का उल्लेख किया गया है।
श्रृंगार गौरी के बाद सौभाग्य गौरी फिर ललिता घाट पर स्थित ललिता देवी की पूजा का विधान है। वास्तव में ज्ञानवापी में कोई मस्जिद नहीं है।
मंदिर को तोड़कर मस्जिद का आकार दिया गया है। दीन मोहम्मद के 1937 में दाखिल मुकदमे से उनके परिवार को नमाज पढ़ने की इजाजत मिली लेकिन परिसर का स्वामित्व विश्वनाथ का है।
21 दिसंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई
मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता SFA नकवी ने भी पक्ष रखा। गौरतलब है कि वाराणसी की जिला अदालत में चल रहे श्रृंगार गौरी केस को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई है।
ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने 12 सितंबर को जिला जज वाराणसी की कोर्ट से अर्जी खारिज किए जाने के फैसले को याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
इस याचिका पर वाराणसी की अदालत में वाद दाखिल करने वाली 5 महिलाओं समेत कुल 10 लोगों को पक्षकार बनाया गया है। बता दें कि वाराणसी के जिला जज की कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल की गई आपत्ति को खारिज कर दिया था।
जिला जज ने कहा था कि श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की जा सकती है। जिला जज वाराणसी के इसी फैसले को मस्जिद कमेटी (Masjid Committee) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। मामले की अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी।