झारखंड

झारखंड : डॉक्टरों ने दिया 15 दिन का अल्टीमेटम, आदेश वापस नहीं हुआ तो करेंगे हड़ताल

रांची: स्वास्थ, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग (Welfare department) के द्वारा जारी आदेश राज्य सरकार में नियुक्त गैर शैक्षणिक संवर्ग के चिकित्सक किसी भी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या जांच केंद्र (Test center) में अपनी सेवा नहीं देंगे।

इसे लेकर अपना आक्रोश जाहिर किया। करमटोली चौक स्थित IMA Bhawan में रविवार को झासा के आह्वान पर राज्य भर के सभी जिलों के प्रतिनिधि बैठक में शामिल हुए।

इस दौरान सभी डॉक्टरों ने एक स्वर में विभाग के आदेश को तुगलकी फरमान करार दिया। बैठक में आंदोलन की रूपरेखा तय की गयी।

झासा के राज्य सचिव Dr. Vimlesh Singh ने कहा कि सरकार के आदेश के विरोध में रविवार को राज्य के सभी जिले के प्रतिनिधियों की बैठक हुई।

सरकार डॉक्टरों को मजबूर नहीं करें अन्यथा इसकी पुरी जिम्मेवारी सरकार की होगी

इस दौरान निर्णय लिया गया है कि सरकार यदि अपने आदेश को वापस नहीं लेती है, तो आज से 15 दिन के बाद राज्य भर के 2178 सरकारी डॉक्टरों के साथ आईएमए के सदस्य अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे।

हालांकि, इस दौरान इमरजेंसी सेवा (Emergency Service) को बाधित नहीं किया जाएगा। साथ ही सभी जिले के प्रतिनिधियों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे मुख्यमंत्री के नाम से अपने-अपने जिले के उपायुक्त और स्थानीय जनप्रतिनिधि को ज्ञापन देना सुनिश्चित करेंगे।

यदि फिर भी सरकार आदेश वापस नहीं लेती है, तो सभी डॉक्टर सामूहिक रूप से इस्तीफा देंगे।

आईएमए रांची के सचिव डॉ प्रदीप सिंह ने कहा कि सरकार का यह आदेश तुगलकी फरमान है।

उन्होंने कहा कि जब सरकार डॉक्टरों को एनपीए नहीं देती है तो उन्हें फैसला लेना का कोई हक भी नहीं है।

2016 में भी ऐसा ही फरमान जारी किया गया था लेकिन डॉक्टरों के भारी विरोध के बाद तत्कालीन सरकार ने इसे वापस ले लिया था।

उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि जिस राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी हो, वहां ऐसा आदेश निकाल कर सरकार क्या संदेश देना चाहती है? यह निर्णय जनविरोधी है। सरकार Doctors को मजबूर नहीं करें अन्यथा इसकी पुरी जिम्मेवारी सरकार की होगी।

सरकार के आदेश से कमजोर होता है मनोबल

IMA-JDN के स्टेट कन्वेनर डॉ अजीत कुमार ने कहा कि सरकार के आदेश से चिकित्सकों का मनोबल कमजोर होता है।

उन्होंने कहा कि जनता की सेवा करना हम सभी चिकित्सकों का कर्तव्य है। लेकिन जिस तरह से विभाग का आदेश आया है, हमें मरीजों की जान बचाने से पूर्व सोचना पड़ेगा।

यदि हम इलाज नहीं करते हैं, तो मरीज और उनके परिजनों का आक्रोश झेलना पड़ेगा और इलाज करने पर विभागीय कार्रवाई (Departmental action) किया जाएगा।

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