रांची : झारखंड में डायन-बिसाही का आरोप लगाकर महिलाओं पर अत्याचार और हत्या का मामला अक्सर सामने आता रहता है।
झारखंड पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में किसी न किसी थाना में हर हफ्ते डायन-बिसाही के एक-दो मामले सामने आते हैं। इसमें ज्यादातर महिलाएं ही प्रताड़ित होती हैं।
सात वर्ष में 4691 मामले दर्ज
पुलिस आंकड़ों के अनुसार, पिछले सात वर्ष (2015-21) में झारखंड में 4691 मामले दर्ज किये गये। इनमें हत्या से संबंधित 314 मामले दर्ज हैं।
डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम के तहत 2015 में 818, 2016 में 688, 2017 में 668, 2018 में 567, 2019 में 978 और 2020 में 837 मामले दर्ज किये गये। 2020 में डायन-बिसाही के नाम पर 30 लोगों की हत्या कर दी गयी।
वर्ष 2021 में अब तक डायन हत्या और डायन अधिनियम से संबंधित 135 मामले सामने आये हैं। इनमें चार डायन-बिसाही में हत्या और 131 मामले डायन अधिनियम से संबंधित दर्ज किये गये हैं।
अशिक्षा और अंधविश्वास हैं कारण
अशिक्षा और अंधविश्वास की वजह से डायन-बिसाही की घटनाएं होती हैं।
झारखंड के ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले ज्यादातर लोग किसी बीमारी के फैलने की स्थिति में पहले ओझा के पास जाते हैं। इसके बाद जब उनसे बीमारी ठीक नहीं होती, तब झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं।
ओझा और झोलाछाप डॉक्टरों से कुछ नहीं हो पाता, तब वे आस-पड़ोस की किसी महिला को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं।
मौजूदा समय में गांवों में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं। ऐसी स्थिति में झोलाछाप डॉक्टर और ओझा ही लोगों का सहारा हैं।
ओझा की ओर से डायन करार दी गयी महिला का उत्पीड़न शुरू होता है और कई बार हत्या भी कर दी जाती है।
लोग पुरानी धारणा को मानते हुए किसी बच्चे को बुखार आने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, रात में रोने, नींद न आने, गांव में फसल कम होने, पानी कम गिरने या अधिक गिरने, जानवरों की तबीयत खराब होने पर यह मान लेते हैं कि किसी की नजर लगी है।
संपत्ति हड़पने के लिए भी बनाया जाता है निशाना
मामले को लेकर सीआईडी के एडीजी अनिल पलटा ने बताया कि डायन हत्या के पीछे आर्थिक झगड़े, अंधविश्वास और दूसरे निजी और सामाजिक संघर्ष प्रमुख कारण हैं।
अधिकतर आदिवासी समुदाय में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में जमीन पर ज्यादा अधिकार प्राप्त होते हैं।
इस संपत्ति पर अधिकार जमाने के लिए उन्हें डायन साबित करने की कवायद शुरू की जाती है।
खासकर उन महिलाओं को निशाने पर रखा जाता है, जिनके परिवार में कोई नहीं होता।
ग्रामीण इलाकों में संपत्ति हड़पने या आपसी रंजिश के लिए भी इस कुप्रथा की आड़ ली जाती है। इसे रोकने के लिए पुलिस लगातार जागरूकता अभियान चलाती है। इस मामले में संलिप्त व्यक्ति को अविलंब गिरफ्तार भी किया जाता है।
ये हैं प्रमुख घटनाएं
गुमला के कामडारा थाना क्षेत्र के बुरुहातु गांव में 22 फरवरी की रात निकोदिन टोपनो के पूरे परिवार की हत्या डायन-बिसाही की आशंका के आधार पर कर दी गयी थी। हत्या के आरोप में गुमला पुलिस की तरफ से गांव के ही आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
राजधानी रांची में 28 मार्च को लापुंग के लोधमा गांव में डायन-बिसाही का आरोप लगाकर सुको उरांइन की पत्थर से कूचकर हत्या कर दी गयी थी।
मामले में पुलिस ने 30 मार्च को संदीप बाड़ा, पतरस उरांव और गेंदरा बाड़ा को गिरफ्तार किया था।
तीनों ने घटना में अपनी संलिप्तता स्वीकार की थी। गिरफ्तार आरोपितों की ओर से बताया गया कि दो साल पहले आरोपी संदीप बाड़ा के बच्चे की मौत हो गयी थी।
उस वक्त संदीप और उसके परिजनों ने महिला पर डायन होने का शक जताया था।
हालांकि, उस वक्त संदीप ने महिला के साथ कुछ नहीं किया। एक सप्ताह पहले महिला आरोपी संदीप के घर के आस-पास मंडरा रही थी।
परिवार के सदस्यों की मौत होने के संदेह में आरोपियों ने 28 मार्च को सुको की सोते वक्त पत्थर से कूचकर हत्या कर दी।
रांची के बेड़ो, नामकुम, लापुंग, दशम, अनगड़ा और तुपुदाना ऐसे इलाके हैं, जहां डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करने की खबरें सामने आती हैं।
लगातार चलाया जाता है जागरूकता अभियान
पुलिस की ओर से डायन-बिसाही के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार कर ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलायी जाती है। सभी थाना के प्रभारी गांव के मुखिया के साथ लोगों के बीच डायन-बिसाही को लेकर हमेशा बैठक करते हैं।
इसके अलावा झारखंड के सभी ग्रामीण थानों में चौकीदार द्वारा भी डायन कुप्रथा के खिलाफ प्रचार-प्रसार किया जाता है।
जिले के एसपी इस संबंध में सभी थाना प्रभारियों को डायन-बिसाही के मामलों को रोकने के लिए ग्रामीणों के साथ बैठक करने का भी निर्देश देते हैं।
सभी जिलों में नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी लोगों को डायन-बिसाही की कुप्रथा के खिलाफ जागरूक किया जाता है। सरकार भी अपने स्तर से लोगों को जागरूक करती है।
कुछ लोगों का कहना है कि डायन-बिसाही की कुप्रथा को रोकने के लिए लोगों को शिक्षित करना और स्वास्थ्य सुविधाएं सहित अन्य सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में मिले, इसकी व्यवस्था करना बेहद जरूरी है।