रांची: झारखंड विधानसभा परिसर में शुक्रवार को सरहुल, बाहा पूर्व मिलन समारोह का आयोजन किया गया। मिलन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवीन्द्र नाथ महतो उपस्थित थे।
मौके पर रवीन्द्र नाथ महतो ने कहा कि हमारे झारखण्ड को प्रकृति ने अपने प्राकृतिक धरोहरों से नवाजा है जिसके मर्म में जल, जंगल और जमीन से जुड़ी हुई भावनाएं हैं।
वन सम्पदा हमारी भारतीय संस्कृति और प्राचीन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, जो हमारे राज्य झारखण्ड के सांस्कृतिक जीवन की आत्मा है।
उन्होंने कहा कि इसी क्रम में सरहुल और बाहा पर्व फूलों का त्योहार के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम की भावनाओं को भी समाहित किये हुए है।
रहुसल दो शब्दों से मिलकर बना है सर और हुल, जिसमें सर का अर्थ सरई अर्थात् सखुआ (साल पेड) के फूलों से है, जबकि हुल का अर्थ क्रांति से है।
सखुआ के फूलों की क्रांति को सरहुल के नाम से जाना जाता है। इसी साल के पत्तों का प्रयोग संथाल हुल क्रांति में भी किया गया था।
त्योहार की किवदंतियां, महाभारत युद्ध से भी जुड़ी हुई है
यह पर्व नये साल की शुरूआत का प्रतीक है, जो हमारे राज्य के राजकीय वृक्ष साल पेड़ों को अपनी शाखाओं पर नये फूल मिलने का द्योतक है,।
वहीं इस त्योहार की किवदंतियां, महाभारत युद्ध से भी जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि सरहुल में डॉ रामदयाल मुण्डा का कथन नाची से बांची यानि जो नाचेगा वही बचेगा, क्योंकि नृत्य ही संस्कृति है।
इस संस्कृति में महिलाओं की लाल पाड़ साड़ी में सफेद रंग पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है, वहीं लाल रंग संघर्ष को बतलाता है।