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अब मोती की खेती के रूप में भी होगी चांडिल डैम की पहचान

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सरायकेला: सरायकेला-खरसावां जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर चांडिल की मशहूर स्वर्णरेखा परियोजना (Swarnrekha Project) के तहत किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से मोती की खेती शुरू की गई है।

क्षेत्र के किसानों ने इस कार्य की शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट (Pilot Project) के तहत की है। इन किसानों के उत्साह को देखते हुए ऐसा लगता है कि अब चांडिल डैम की पहचान सिर्फ मछली पालन से ही नहीं, बल्कि मोती की खेती (Pearl Farming) के रूप में भी होगी।

किसान वहां अब कम खर्च में अधिक मुनाफा पाने के लिए मोती की खेती (Pearl Farming) कर सकते हैं। मोती की खेती से पहले से आठ गुना अधिक मुनाफा हासिल कर सकते हैं।

अभी प्रयोग के तौर पर शुरू की गई है मोती की खेती

पहले चरण में अभी चांडिल डैम में मोती की खेती (Pearl Farming) प्रयोग के तौर पर की जा रही है। इसके बाद बड़े पैमाने पर इसकी खेती किए जाने की योजना है।

गौरतलब है कि उक्त डैम में बांध मत्स्य समिति के बैनर तले विस्थापित किसानों (Displaced Farmers) द्वारा किया जा रहा केज पद्धति से मछली पालन पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है।

डैम के विस्थापित मछली पालन से जुड़कर न सिर्फ स्वरोजगार (Self Employed) कर रहे हैं, बल्कि मछली पालन के लिए प्रोत्साहन को लेकर इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिल रहा है ताकि वे आधुनिक तकनीक से मत्स्य पालन कर सकें।

मछली पालन के क्षेत्र में सफलता मिलने के बाद अब किसान पूरे लगन के साथ मोती की खेती करने में जुटे हुए हैं।

मछली पालन के केज में ही हो रही है मोती की खेती

डैम में मोती की खेती कर रहे एक बुजुर्ग किसान ने बताया कि जिला मत्स्य कार्यालय व पूर्ति एग्रोटेक रांची के सहयोग से इस वर्ष मोती की खेती शुरू की गई है।

वर्तमान में प्रयोग के तौर पर 3000 मोती की खेती की जा रही है। मोती की खेती (Pearl Farming) करने के तरीके से लेकर आधुनिक तकनीक की जानकारी पूर्ति एग्रोटेक द्वारा दी जा रही है।

एक अन्य किसान ने बताया कि मोती एक वर्ष में तैयार होती है। मछली पालन के केज में ही मोती की खेती हो रही है। उन्होंने बताया कि मोती की खेती सीप से की जाती है।

मछली के मल सीप का फीडिंग (Oyster Feeding) है। केज में मछली का वृहत स्तर पर पालन हो रहा है। उससे निकलने वाले वेस्टेज शीप का फीडिंग है।

इसके लिए अलग से फीड की व्यवस्था भी नहीं करनी पड़ती है। केज में मोती खेती के लिए बीज डाल दिया गया है। बताया कि मोती की खेती करते करीब छह माह पूरे हो गए हैं। जनवरी 2023 में मोती निकलना प्रारंभ हो जाएगा।

मोती की खेती में खर्च की तुलना में आठ गुना मिलता है फायदा

बातचीत के क्रम में क्षेत्र के किसानों ने बताया कि एक मोती की खेती (Pearl Farming) करने में लगभग 50 रुपये ही खर्च आता है, जबकि बाजार में तैयार मोती की कीमत 400 रुपये से अधिक होती है। इस प्रकार खर्च का आठ गुना फायदा मिलता है।

इस वर्ष तीन हजार मोती यानी 12 लाख का कारोबार होने का अनुमान है, जबकि इसमें खर्च करीब डेढ़ लाख रुपये आने की बात बताई गई है।

किसानों के मुताबिक देश में मोती का प्रमुख बाजार हैदराबाद में है जहां से अभी से ही ऑर्डर मिलने लगे हैं। मोती तैयार होते ही वहां भेज दिया जाएगा।

जिला मत्स्य पदाधिकारी ने कहा-मोती की खेती से किसानों में जगेगा आत्मविश्वास

मोती की खेती (Pearl Farming) के संबंध में जिला मत्स्य पदाधिकारी प्रदीप कुमार ने बताया कि अब मत्स्य पालन (Fisheries) के साथ मोती पालन के लिए भी चांडिल की पहचान बनेगी।

वहां के विस्थापित किसानों (Farmers) को इससे दोगुना लाभ मिलेगा, क्योंकि वे मछली के साथ उसी केज में मोती की खेती (Pearl Farming) भी कर सकेंगे।

इसके लिए अलग से किसानों को कुछ करना नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि मोती की खेती और मत्स्य पालन से राज्य के पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे किसानों में आत्मविश्वास जगेगा और उनकी आर्थिक उन्नति (Economic Progress) भी होगी।

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