रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के वरिष्ठ नेता Supriyo Bhattacharya ने कहा कि 11 नवंबर का दिन धर्म सम्मान, पहचान और अधिकार दिवस (Rights Day) के तौर पर मनाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि आज का दिन Jharkhand के लिए ऐतिहासिक है। ये लड़ाई और मांग छोटी नहीं थी, राज्य अलग होने की बुनियाद इसी से तय की गई थी।
राज्य के साढ़े तीन करोड़ लोग दिशोम गुरु के पुत्र मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन (Hemant Soren) ने गुरुजी के संघर्ष को सर्वोच्च सम्मान दिया।
11 नवंबर के दिन धर्म सम्मान पहचान और अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाएगा
भट्टाचार्य (Bhattacharya) शुक्रवार को पार्टी कार्यालय में प्रेस कांफ्रेंस में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य जब अलग हुए तो पिछडों के पास 27 प्रतिशत आरक्षण का अधिकार था जिसे इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के साथ मिलकर सुदेश महतो ने 14 प्रतिशत कर दिया था, आज उस गद्दारी को सबक मिला।
यहां के लोगों की मांग सरना धर्म कोड (Sarna Religion Code) को लेकर 11 नवम्बर को पिछले साल सरना धर्म कोड पास किया गया था।
इस वर्ष 11 नवंबर को झारखंडियों की पहचान और अधिकार देते हुए 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का काम किया ।
अगले वर्ष से 11 नवंबर के दिन धर्म सम्मान पहचान और अधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। अब हर वर्ष पूरे देश में जितने भी आदिवासी और मूलवासी है उनके लिए यह दिन शुभ दिन होगा ।
अलग प्रांत की फिर पहचान की लड़ाई शुरू हुई
उन्होंने कहा कि 1928 में ब्रिटिश काल मे मरांग गोम के जयपाल सिंह मुंडा (Jaipal Singh Munda) ने ब्रिटिश सरकार से मांग की थी कि झारखंड, बिहार, ओडिशा और बंगाल को मिलाकर आदिवासी इलाके को एक अलग प्रांत बनाया जाये।
इसके बाद अलग प्रांत की फिर पहचान की लड़ाई शुरू हुई। उन्होंने कहा कि 100 साल तक चले इस पहचान की लड़ाई को हेमन्त सोरेन ने उपहार स्वरूप दिया।
उन्होंने कहा कि भाजपा राजनीत के लिए आदिवासी महिला (Tribal Woman) को राष्ट्रपति तो बना सकता है लेकिन आदिवासी मुख्यमंत्री को सहन नहीं कर सकता।