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गांधी परिवार के बेहद खास मोतीलाल वोरा का पत्रकार से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

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नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में एक और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा अब इस दुनिया में नहीं रहे।

21 दिसम्बर सोमवार को उन्होंने दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट अस्पताल में आखिरी सांस ली।

एक दिन पहले ही 20 दिसम्बर को उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया था।

वोरा के इस तरह दुनिया को अलविदा कह जाने से कांग्रेस पार्टी में शोक की लहर है।

पत्रकार से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर

मोतीलाल वोरा का जन्म 20 दिसम्बर, 1928 को राजस्थान के नागौर में पड़ने वाले निंबी जोधा में हुआ था।

वैसे उनके बचपन में ही पूरा परिवार मध्यप्रदेश आकर बस गया।

वोरा की पढ़ाई-लिखाई रायपुर और कोलकाता में हुई। इसके बाद वोरा ने कलम का सहारा लिया और हिंदी पत्रकारिता को पेशे के तौर पर चुना।

पत्रकार रहते हुए ही वह राजनीति में भी सक्रिय हो गए और उन्होंने प्रजा समाजवादी पार्टी का झंडा उठा लिया।

उन्होंने वर्ष 1968 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग से पार्षद का चुनाव जीता।

इसके बाद वर्ष 1972 में उनकी किस्मत तब पलटी जब एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारकाप्रसाद मिश्र की नजर दुर्ग के पार्षद वोरा पर पड़ी और उन्हें कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करने का मौका मिला।

इसके बाद उनका सीधे तौर पर मध्य प्रदेश की विधानसभा की राजनीति में प्रवेश हुआ।

फिर क्या था, कांग्रेस की नाव पर सवार होकर वह दुर्ग के विधायक बन गए।

वर्ष 1985 में वोरा की किस्मत ने एक बार फिर उनका साथ दिया।

विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले थे तो राजीव गांधी ने वोरा के सामने पंजाब का गवर्नर बनने का प्रस्ताव रखा।

अर्जुन सिंह ने भी मोतीलाल वोरा के नाम का प्रस्ताव रखा और बात बन गई।

गांधी परिवार के बेहद खास

मोतीलाल वोरा को गांधी परिवार का बेहद खास माना जाता रहा है। वह सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबी थे।

करीब दो दशक तक उन्होंने कांग्रेस के कोषाध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी संभाली।

हालांकि बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए राहुल गांधी ने साल 2018 में मोतीलाल वोरा से कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी ले ली थी। इसके बाद पार्टी ने इस जिम्मेदारी के लिए अहमद पटेल पर भरोसा जताया था।

अहमद पटेल का भी बीते दिनों कोरोना संक्रमण के बाद निधन हो गया था।

वोरा के चार बेटियां औऱ दो बेटे हैं जिनमें इतने लंबे सांगठनिक कार्यकाल के दौरान उन्होंने बेटे अरुण वोरा को सियासत में जमाने की कोशिश की।

अरुण 1993 में जीत के बाद लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारे, मगर पिता की बदौलत 2013 में फिर टिकट मिला और इस बार वो चुनाव जीतने में वह सफल रहे। इस समय अरुण वोरा छत्तीसगढ़ के दुर्ग से विधायक हैं।

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