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कर्नाटक हिजाब मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राइट टू ड्रेस अगर मौलिक अधिकार तो राइट टू अन-ड्रेस भी मौलिक अधिकार होगा

नई दिल्ली: कर्नाटक हिजाब मामले (Karnataka Hijab Cases) पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा कि राइट टू ड्रेस अगर मौलिक अधिकार है तो राइट टू अन-ड्रेस भी मौलिक अधिकार होगा। इस मामले पर कल यानी 8 सितंबर को भी सुनवाई जारी रहेगी।

आज सुनवाई के दौरान वकील एजाज मकबूल (Advocate Ejaz Maqbool) ने कहा कि मैंने सभी 23 याचिकाओं की मुख्य बातों का संकलन जमा करवाया है। Whatsapp Group बना कर उसे वकीलों को भी दिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि मुद्दों का बंटवारा कर सुनवाई हो। ऐसा नहीं हो सकता कि संविधान सभा की बहस की तरह इसे लंबा चलाया जाए।

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इन देशों से भारत की तुलना नहीं हो सकती

सुनवाई के दौरान हिजाब समर्थक पक्ष के वकील देवदत्त कामत ने कहा कि राजीव धवन अस्वस्थ हैं। मैं उनके बिंदु भी रखूंगा। मेरी कोशिश है कि मामला संविधान बेंच को भेजा जाए। सरकार छात्रों के अधिकार की रक्षा में विफल है। Uniform पहनने के बाद सिर पर उसी रंग का स्कार्फ रखने में क्या गलत है।

कोई बुर्का पहनने की मांग नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि SC ने राष्ट्रगान पर भी एक आदेश दिया था। इस पर जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि हां, उस फैसले में माना गया था कि राष्ट्रगान के समय खड़े होना सम्मान है। उसे गाना जरूरी नहीं। तब कामत ने कहा कि Central School में मुस्लिम लड़कियों को स्कार्फ पहनने की अनुमति है।

कर्नाटक के स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह देखना होगा कि क्या स्कूल के भीतर Constitution की धारा 19 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता) या 25 ( धर्म के पालन का अधिकार) लागू नहीं होता है।

कामत ने दक्षिण अफ्रीका के एक मामले पर बोला जो एक भारतीय छात्र सोनाली से जुड़ा है। तब जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि अब आप भारत आ जाइए। कामत ने अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के भी कुछ मामलों का हवाला दिया। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इन देशों से भारत की तुलना नहीं हो सकती। उनकी परिस्थितियां अलग हैं। इस पर कामत ने कहा कि मैं सिर्फ कुछ उदाहरण दे रहा हूं।

स्कूलों का निर्णय स्वतंत्र नहीं था। उन पर राज्य का दबाव था

तुर्की, फ्रांस जैसे देशों पर भी कुछ बातें रखने के बाद कामत ने कहा कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की बात कहते हैं। इस पर जस्टिस गुप्ता (Justice Gupta) ने कहा कि क्या सभी धर्म ऐसा मानते हैं। इस पर कामत ने कहा कि अरुणा राय मामले के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा कहा था। कामत ने कहा कि राज्य सरकार का आदेश था कि ‘छात्रों का धार्मिक पोशाक पहनना एकता में बाधक है। Uniform पर स्कूल निर्णय लें। लड़कियों का सिर पर स्कार्फ पहनना आर्टिकल 25 (धर्म के अनिवार्य हिस्सों के पालन) के तहत नहीं आता।’ साफ है कि स्कूलों का निर्णय स्वतंत्र नहीं था। उन पर राज्य का दबाव था।

कामत ने कहा कि लोग रुद्राक्ष या क्रॉस पहनते हैं। सिर्फ एक धर्म को निशाना बनाया जा रहा है। तब Court ने कहा कि वह कपड़ों के अंदर पहना जाता है। स्कार्फ सिर पर पहना जाता है। इस पर कामत ने कहा कि Uniform के साथ स्कार्फ की अनुमति धर्मनिरपेक्षता है । तब कोर्ट ने कहा कि हम हमेशा धर्मनिरपेक्ष थे। संविधान में यह शब्द 1976 में जोड़ा गया। तब कामत ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर रोक तब लगती है जब वह कानून-व्यवस्था या नैतिकता के विरुद्ध हो। लड़कियों का हिजाब पहनना न कानून-व्यवस्था के खिलाफ है, न नैतिकता के। तब Court ने कहा कि आपको सिर्फ School में पहनने से मना किया गया है। बाहर नहीं।

5 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओ ने जब पगड़ी का हवाला दिया तो Court ने इससे इनकार करते हुए कहा था

5 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओ ने जब पगड़ी का हवाला दिया तो Court ने इससे इनकार करते हुए कहा था कि पगड़ी की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा था कि पगड़ी सिर्फ धार्मिक पोशाक नहीं है। मेरे दादा वकालत करते हुए इसे पहना करते थे। तो पगड़ी को सिर्फ धर्म से नहीं जोड़िए। Court ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं। इससे इतर सवाल ये है कि संविधान के मुताबिक भारत एक सेकुलर देश है। क्या ऐसे देश में सरकारी शैक्षणिक संस्थानों (Government Educational Institutions) में हिजाब पहनने का अधिकार मांगा जा सकता है। ये बहस का विषय है।

29 अगस्त को कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को Notice जारी किया था। कर्नाटक की दो छात्राओं ने कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को SC में चुनौती दी है। इस मामले में हिंदू सेना के नेता सुरजीत यादव ने भी कैविएट दाखिल कर SC से HC के फैसले पर रोक का एकतरफा आदेश न देने की मांग की है। 15 मार्च को कर्नाटक हाई कोर्ट ने हिजाब को इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं कहते हुए शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा। हाई कोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट (SC) में चुनौती दी गई है।

हिजाब मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) ने भी सुप्रीम कोर्ट (SC) का दरवाजा खटखटाया है। उलेमाओं की संस्था समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने भी याचिका दाखिल की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि कर्नाटक HC का फैसला इस्लामिक कानून की गलत व्याख्या है। मुस्लिम लड़कियों के लिए परिवार के बाहर सिर और गले को ढंक कर रखना अनिवार्य है।

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