भारत

कोरोना के मरीजों पर फंगल इफेक्शन की दवाएं बेअसर होने का खतरा बढ़ा: ICMR

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन के अलावा कोई दूसरी ठोस दवा नहीं है।

लिहाज़ा दुनिया भर के वैज्ञानिक मरीजों के बेहतर इलाज के लिए लगातार रिसर्च कर रहे हैं।

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक ताज़ा रिसर्च के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल के ज़्यादा इस्तेमाल के चलते कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीज़ों में दोबोरा फंगल इंफेक्शन का खतरा बढ़ रहा है।

एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस रिसर्च एंड सर्विलांस नेटवर्क की नवीनतम सालाना रिपोर्ट में और क्या कहा गया है इसे जानने से पहले समझ लेते हैं कि आखिर एंटीमाइक्रोबियल है क्या? आपने एंटीबायोटिक का नाम सुना होगा।

इसका इस्तेमाल बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए किया जाता है। ठीक इसी तरह एंटीमाइक्रोबियल का इस्तेमाल इंसानों, जानवरों और पौधों में फंगल इंफेक्शन को रोकने के लिए किया जाता है।

आईसीएमआर के मुताबिक एंटीमाइक्रोबियल के ज्यादा इस्तेमाल से पैथोजेन बनते हैं, यानी उस बैक्टीरिया और फंगस का जन्म होता है जो दोबारा फंगल इंफेक्शन पैदा कर रहा है।

आमतौर पर ये इंफेक्शन दवाई के इस्तेमाल के बाद भी जल्दी खत्म नहीं होते हैं। इसे विज्ञान कि भाषा में एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहा जाता है।

इस पैथोजेन के चलते मरीजों में निमोनिया और युरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन देखा जाता है।

रिपोर्ट में इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि कोरोना के चलते फंगल इन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ रहा है।

इस रिपोर्ट को दिल्ली के 30 अलग-अलग सेंटर से डेटा लेने के बाद तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि नए पैथोजेन का कैसे इलाज किया जाए।

आईसीएमआर में महामारी विज्ञान और संचारी रोग विभाग के एक वैज्ञानिक डॉ। कामिनी वालिया ने कहा हमारे पास एसिनेटोबैक्टर बॉमनी और क्लेबसिएला न्यूमोनिया जैसे रोगजनक भी हैं जो दवा प्रतिरोध बढ़ रहा है।

Back to top button
Close

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker