नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने Sex workers को सम्मान के साथ जीने का हक देने के मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इससे संबंधित विधेयक की प्रति पैनल के साथ दो हफ्ते के अंदर साझा करें वर्ना कैबिनेट सचिव को कोर्ट में तलब करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले ही इस मामले पर कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश दिया था।
आज सुनवाई के दौरान वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि अभी तक पश्चिम बंगाल ने सिर्फ हलफनामा दाखिल किया है।
दरअसल मई में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए राज्य सरकारों (State governments) को कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे।
कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के काम को पेशा मानते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वो उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करें। कोर्ट ने कहा था कि सहमति से सेक्स के मामले में कोई कार्रवाई न करें।
किसी सेक्स वर्कर के साथ यौन हिंसा की गई है तो उसे तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए
कोर्ट ने कहा था कि सेक्स वर्कर को भी कानून के तहत गरिमा और सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा था कि जब यह साबित हो जाए कि सेक्स वर्कर वयस्क (Adult) है और वो अपनी मर्जी से Sex कर रहा है तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए।
देश के हर नागरिक को अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार है। ऐसे में पुलिस छापेमारी करके सेक्स वर्कर को परेशान नहीं करे। कोर्ट ने कहा था कि वेश्यालय चलाना गैरकानूनी (Illegal) है लेकिन अपनी मर्जी से सेक्स करना गैरकानूनी नहीं है।
कोर्ट ने कहा था कि किसी भी बच्चे को उसकी मां से इसलिए अलग नहीं किया जा सकता है कि उसकी मां वेश्या है। वेश्यालयों में अगर कोई नाबालिग बच्चा सेक्स वर्कर के साथ रहते हुए पाया जाता है तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि वह तस्करी करने के लिए लाया गया है।
कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी सेक्स वर्कर (sex worker) के साथ यौन हिंसा की गई है तो उसे तुरंत इलाज उपलब्ध कराया जाए और उसे वो सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए जो यौन प्रताड़ना की पीड़िता को मिलती हैं।
कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) को निर्देश दिया था कि वो पत्रकारों से अपील करें कि जब पुलिस छापेमारी करे या कोई अभियान चलाए तो सेक्स वर्कर की पहचान उजागर न हो चाहे कोई पीड़ित हो या आरोपित।