नई दिल्ली: असंसदीय शब्दों (Unparliamentary Words) को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर (Senior Congress leader Shashi Tharoor) ने रविवार को कहा कि वह सदन में सामान्य तरीके से बोलेंगे और देखेंगे कि क्या वहां सार्थक आलोचना को दबाने के लिए सख्ती से इन शब्दावली को लागू किया जाता है।
थरूर ने ‘पीटीआई-भाषा’ (PTI-Language) को दिये साक्षात्कार में कहा कि यह सूची उन शब्दों का संकलन है जिसे पिछले कुछ सालों में विभिन्न पीठासीन अधिकारियों ने असंसदीय माना है और असल मुद्दा यह है कि इसे व्यवहार में किस तरह से अपनाया जाता है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इनमें कुछ शब्द तो नियमित हैं जो संसदीय संवाद में हर बार सामने आते हैं और हो सकता है कि उन्हें किसी विशेष संदर्भ में कार्यवाही से निकाला जाए जो अन्य परिप्रेक्ष्यों में लागू नहीं होता हो।
थरूर ने कहा, ‘‘किसी भी स्थिति में एक पीठासीन अधिकारी की व्यवस्था आवश्यक रूप से दूसरे के लिए बाध्यकारी नहीं होती।
कई शब्दों को लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह असंसदीय माना जाएगा
इसलिए मैं इस सूची को निर्णायक के बजाय सांकेतिक मानूंगा। मैं सामान्य तरीके से अपनी बात रखूंगा और देखूंगा कि इसे सार्थक आलोचना को दबाने के लिए सख्ती से तो लागू नहीं किया जाता।’’
तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सदस्य ने कहा कि हमेशा की तरह क्रियान्वयन का मुद्दा महत्वपूर्ण है, सूची नहीं।
कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा इसे ‘बोलने पर पाबंदी लगाने के आदेश’ के तौर पर देखे जाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह निर्देश नहीं बल्कि संकेत है।
उन्होंने कहा, ‘‘असंसदीय शब्द बोले जाने के बाद ही हमेशा उसे कार्यवाही से निकाला जाता है, ना कि पहले से। इसलिए किसी को ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए कि प्रतिबंध लगाया जा रहा है।’’
लोकसभा सचिवालय द्वारा एक पुस्तिका में संसद में सामान्य उपयोग वाले कुछ शब्दों को असंसदीय शब्दों की सूची में डाले जाने पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
लोकसभा सचिवालय (Lok Sabha Secretariat) द्वारा जारी नयी पुस्तिका के अनुसार ‘जुमलाजीवी’, ‘बालबुद्धि’, ‘स्नूपगेट’, ‘विश्वासघात’, ‘भ्रष्ट’ और ‘नौटंकी’ जैसे कई शब्दों को लोकसभा और राज्यसभा दोनों जगह असंसदीय माना जाएगा।
इस मुद्दे पर विवाद शुरू होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने स्पष्ट किया था कि संसद में किसी शब्द के बोलने पर पाबंदी नहीं लगाई गयी है बल्कि संदर्भ के हिसाब से उसे कार्यवाही से हटा दिया जाएगा।
संसद भवन परिसर में धरना, प्रदर्शन और धार्मिक कार्यक्रम नहीं किये जाने संबंधी राज्यसभा सचिवालय के परिपत्र के बारे में पूछे जाने पर थरूर ने कहा कि ऐसे कई नियम हैं, लेकिन भारत में संसदीय प्रक्रिया (Parliamentary Procedure) के विकास के साथ नियमों की अवहेलना और अवरोध, नारेबाजी, हंगामा और तख्तियां दिखाना तथा पीठासीन अधिकारी के आसन के पास एकत्र हो जाने जैसी गतिविधियां देखी जाती रही हैं जबकि इन सभी पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध है।
थरूर ने कहा…
थरूर ने कहा, ‘‘व्यक्तिगत रूप से मैं कभी ऐसे व्यवहार के पक्ष में नहीं रहा लेकिन विपक्ष, चाहे उसमें कोई भी दल हो, उसे अक्सर ऐसा लगता है कि व्यवस्था में उसे उसके मुद्दे उठाने का निष्पक्ष अवसर नहीं मिलता और इसलिए वे अपनी बात रखने के लिए ऐसा आचरण करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम सभी अवरोध के बजाय चर्चा करना पसंद करेंगे लेकिन सरकार को आगे बढ़ना होगा और सप्ताह में एक दिन विपक्ष को एजेंडा तय करने देने जैसे नवोन्मेषी तरीके सुझाने होंगे, जैसा कि अन्य संसदीय लोकतंत्रों में होता है। अन्यथा हम इस तरह के नियम जारी करते रहेंगे और वे टूटते रहेंगे।’’
थरूर ने कहा कि विपक्ष और कांग्रेस संसद के मॉनसून सत्र (Monsoon Session) में कई मुद्दे उठाना चाहेगी जिनमें अग्निपथ योजना की वापसी की मांग, बेतहाशा महंगाई, रोजगार का बढ़ता संकट, रुपये का गिरना, चीन के साथ सीमा पर हालात और यूक्रेन युद्ध का भारत में असर आदि शामिल हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन क्या सरकार हमें इन महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने देगी?’’
नये संसद भवन की छत पर स्थापित किये गये राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर उठे विवाद के बारे में पूछे जाने पर थरूर ने कहा कि उन्होंने अभी तक इसे अपनी आंखों से नहीं देखा है।
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘यदि इसे वास्तव में शांत और उदार के बजाय आक्रामक रूप दिया गया है तो यह एक उपहास का विषय होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यदि इसके वास्तुकार यह साबित करने में सफल रहे कि यह केवल नजरिये की बात है और वे मूल प्रतीक (Original Symbol) में आस्था रखते हैं तो हमारे पास शिकायत की वजह कम होगी।’’