नई दिल्ली: Supreme Court ने बुधवार (19 अप्रैल, 2023) को समलैंगिक विवाह (Gay Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रही याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि समलैंगिक संबंध सिर्फ शहरी विचार नहीं है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) DY चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने कहा कि शहरों में अपनी यौन पहचान वाले लोग ज्यादा सामने आते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसे शहरी विचार कहा जाए।
CJI ने यह भी कहा कि सरकार के पास कोई ऐसा कोई डेटा नहीं है, जिससे ये पता चले कि सिर्फ शहरों में ही समलैंगिक विवाह की मांग की जा रही है।
इससे पहले केंद्र सरकार (Central Government) की तरफ से समलैंगिक विवाह की मांग के विरोध में एक एफिडेविट (Affidavit) पेश कर कहा गया था कि यह सिर्फ कुछ शहरी वर्ग की सोच को दिखाता है।
याचिकाकर्ताओं ने किया आग्रह
वहीं, समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने Supreme Court से आग्रह किया कि वह अपने समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे ताकि LGBTQIA समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों (Heterosexuals) की तरह सम्मानजनक जीवन जी सकें।
कुछ याचिकाकर्ताओं (Petitioners) ने इसकी भी मांग की कि राज्यों को आगे आना चाहिए और सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देनी चाहिए।
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने यह मांग हुए पांच सदस्यीय पीठ के सामने रखते हुए विधवा पुनर्विवाह (Remarry) का जिक्र किया।
उन्होंने कहा कि विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून को पहले स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन कानून ने तत्परता से काम किया और आखिरकार इसे समाज की स्वीकृति मिली।
संविधान के अनुच्छेद-142 का जिक्र
उन्होंने संविधान (Constitution) के अनुच्छेद-142 का जिक्र भी किया, जो उच्चतम न्यायालय को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है।
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के पास इसके अलावा, नैतिक अधिकार भी है और जनता का भरोसा भी हासिल है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर हैं कि हमें हमारा हक मिले।”
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी बनाया जाए पक्ष
वहीं, दूसरी तरफ दूसरे दिन की सुनवाई शुरू होने पर केंद्र की ओर से नई याचिका दाखिल की गई।
इसमें सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया कि इस मामले में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्ष बनाया जाए।
दलीलों पर लौटते हुए रोहतगी ने आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने समेत अन्य फैसलों का जिक्र किया।
उन्होंने कहा, “अदालत किसी ऐसे विषय पर फिर से विचार कर रही है, जिसमें पहले ही फैसला किया जा चुका है।”
उन्होंने कहा, “मेरा विषम लैंगिक समूहों के मामले में समान रुख है और ऐसा नहीं हो सकता कि उनका यौन ओरियेंटेशन सही हो और बाकी सभी का गलत। मैं कह रहा हूं कि एक सकारात्मक पुष्टि होनी चाहिए… हमें कमतर मनुष्य नहीं माना जाना चाहिए और इससे हमें जीवन के अधिकार का भरपूर आनंद मिल सकेगा।”