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सुप्रीम कोर्ट ने One Rank One Pension पर केंद्र सरकार के फैसले को रखा बरकरार

नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बल की वन रैंक वन पेंशन योजना (ओआरओपी )पर सरकार के निर्णय को बरकरार रखते हुये बुधवार को कहा कि यह मनमाना नहीं है और न ही इसमें कोई संवैधानिक दोष है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुये कहा कि केंद्र सरकार का ओआरओपी के संबंध में लिया गया फैसला मनमाना नहीं है और यह उसके नीति निर्माण अधिकारों के दायरे में आता है।

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि सरकार के नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप करना अदालत का काम नहीं है।

मामले की सुनवाई करने वाली खंडपीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिर विक्रम नाथ भी शामिल थे।

ओआरओपी योजना के खिलाफ दायर पूर्व सैनिकों के एसोसिएशन की याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुये खंडपीठ ने कहा कि उन्हें सात नवंबर 2015 को अधिसूचित ओआरओपी के सिद्धांत में कोई संवैधानिक दोष नहीं मिला है।

केंद्र सरकार का कहना है कि वन रैंक वन पेंशन योजना यह सुनिश्चित करती है कि समान अवधि तक समान रैंक पर सेवा देने वाले सभी सैन्यकर्मियों को एक समान पेंशन प्राप्त हो भले ही वह चाहे किसी भी तारीख को रिटायर हुये हों।

इस योजना के तहत पेंशन में की जाने वाली कोई भी बढ़ोतरी पूर्व से पेंशन ले रहे सैन्यकर्मियों के पेंशन में स्वत: जुड़ जायेगी।

खंडपीठ ने कहा कि सरकार को हर पांच साल में एक बार पेंशन को दोबारा निर्धारित करना होगा।

याचिकाकर्ता को इस बार से आपत्ति थी कि पेंशन योजना को पांच साल में एक बार पुनर्निधारित किया जायेगा। याचिका में इसे हर साल पुनर्निधारित करने की मांग की गयी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।

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