बिहार

कन्हैया के गृह जिला बेगूसराय में गरम है चर्चाओं का दौर

बेगूसराय: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) दिल्ली के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे और 2019 में बेगूसराय संसदीय सीट से गिरिराज सिंह से बुरी तरह चुनाव हारनेे वाले वामदलों के उम्मीदवार रहे कन्हैया कुमार ने मंगलवार को दिल्ली में सीपीआई छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ही देश बचा सकती है। देश की पुरानी पार्टी होने के नाते यह भगतसिंह और महात्मा गांधी के विचारों की पार्टी है और उनके सपने इसी से पूरे हो सकते हैं।

कन्हैया के कांग्रेस में जाने के बाद कन्हैया के गृह जिला बेगूसराय में चर्चाओं का बाजार गर्म है।

कम्युनिस्ट पार्टी के जिला कार्यालय में जहां वीरानी छाई हुई है, वहीं कन्हैया के समर्थकों में उल्लास है।

कन्हैया ने भले ही कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर बेगूसराय में चुनाव लड़ा था, लेकिन यहां पार्टी से हटकर कन्हैया के समर्थक युवाओं की एक टीम है।

जिसे ना तो किसी पार्टी और ना ही किसी नेता, सिर्फ और सिर्फ कन्हैया से मतलब है।

ऐसे युवाओं में खुशी है कि कन्हैया चोला बदलकर कांग्रेसी हो गए। दूसरी ओर कन्हैया के दल बदलने के पीछे उसके किसी भी सदन में पद पाने संबंधी महत्वाकांक्षा के भी जोरदार चर्चा हो रही है।

विभिन्न समसामयिक मुद्दों को लेकर लिखने पढ़ने वाले समाजवादी महेश भारती कहते हैं कि कन्हैया कुमार 2016 में तब चर्चा में आए थे, जब जेएनयू में छात्र आंदोलन के क्रम में उनपर कथित रूप से देशविरोधी नारे लगाने का आरोप लगा था, वे इस मामले में जेल भी गए थे।

देश-भर के भाजपा विरोधी दलों के नेताओं, बुद्धजीवियों, पत्रकारों, रणनीतिकारों ने उनको भारी क्रांतिकारी बताते हुए उनका खूब प्रोटेक्शन किया था।

वामपंथियों को तो मानो नया मार्क्स लेनिन मिल गया हो, इस तरह से पिछले पांच सालों से वे उनको प्रोजेक्ट करते रहे। सीपीआई नेता के रूप में कन्हैया ने काफी ख्याति अर्जित की।

अमूमन शाखा सदस्य बनाने वाली पार्टी ने उन्हें एकाएक राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया।

इतना ही नहीं अमूमन नए कार्यकर्ताओं को चुनाव में टिकट नहीं देनेवाले इस दल ने उन्हें तरजीह देते हुए बेगूसराय संसदीय सीट से चुनाव मैदान में भी उतारा। जबकि, बेगूसराय में कई नेता चुनावी टिकट के रेस में थे।

उनके चुनाव प्रचार में देश की कई नामी-गिरामी हस्तियां, फिल्मी दुनिया के लोग, कलाकार, चोटी के पत्रकार, बुद्धिजीवी आए। सीपीआई के चुनाव में जितना धन उसके यहां के इतिहास के चुनाव में खर्च नहीं हुए थे, उतना खर्च किया।

चुनावी फंडिंग में उन्होंने दूसरे दलों को भी मात दे दिया। लेकिन, देशद्रोही का ठप्पा लगे और अनोखा चुनाव प्रचार के बावजूद वे चुनाव जीत नहीं सकते।

बेगूसराय में कम मतों के अंतर से संसदीय चुनाव हारनेवाली सीपीआई, कन्हैया के तामझामी चुनाव प्रचार के बावजूद चार लाख से अधिक मतों के अंतर से भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह से चुनाव हार गयी।

पार्टी के अंदरखाने गुटबंदी को भी हार का कारण बताया गया था। चुनाव के बाद से ही वे राष्ट्रीय क्षितिज के नेता हो गए।

बिहार विधानसभा चुनाव में उनके बरौनी विधानसभा सीट से बतौर सीपीआई उम्मीदवार लडने की जोरदार चर्चा रही।

लेकिन, पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में नहीं उतारा। पिछले वर्ष पटना के पार्टी कार्यालय में उनके गुट के नेताओं द्वारा सीनियर नेताओं के साथ बदसलूकी की चर्चा भी रही।

सीपीआई से उनका विलगाव तब से ही शुरू हो गया था, अब वे कांग्रेस में हैं। कांग्रेस में वे भगतसिंह, गांधी जी और अम्बेडकर का चित्र लेकर राहुल गांधी के साथ खड़े हैं।

गांधी और मार्क्स, गांधी और अम्बेडकर, भगतसिंह और गांधी के साथ कांग्रेस के आधुनिक गांधी सोनिया और राहुल के साथ कितना फलोरिश करते हैं यह आनेवाला वक्त ही बताएगा।

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