मुंबई : RBI ने गुरुवार को जारी अपने मसौदा मास्टर निर्देशों में प्रस्ताव दिया है कि ऋणदाताओं को किसी खाते के गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में बदलने के छह महीने के भीतर डिफॉल्ट करने वाले उधारकर्ताओं को ‘जानबूझकर डिफॉल्टर’ के रूप में लेबल करना चाहिए।
RBI ‘जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों’ की पहचान उन लोगों के रूप में करता है, जो बैंक का बकाया चुकाने की क्षमता रखते हैं, लेकिन बैंक का पैसा नहीं चुकाते या उसका अन्यत्र उपयोग नहीं करते। RBI के पास पहले कोई विशिष्ट समय-सीमा नहीं थी, जिसके भीतर ऐसे उधारकर्ताओं की पहचान की जानी थी।
सर्कुलर में कहा गया है कि एक जानबूझकर डिफॉल्टर (default) या कोई भी इकाई, जिसके साथ एक जानबूझकर डिफॉल्टर जुड़ा हुआ है, उसे किसी भी ऋणदाता से कोई अतिरिक्त क्रेडिट सुविधा नहीं मिलेगी और वह क्रेडिट सुविधा( credit facility) के पुनर्गठन के लिए पात्र नहीं होगा।
RBI ने प्रस्ताव दिया है कि
RBI ने प्रस्ताव दिया है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को भी समान मापदंडों का उपयोग करके खातों को टैग करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
RBI ने यह भी सुझाव दिया है कि बैंकों को एक समीक्षा समिति का गठन करना चाहिए और उधारकर्ता को लिखित प्रतिनिधित्व देने के लिए 15 दिनों तक का समय देना चाहिए, साथ ही जरूरत पड़ने पर व्यक्तिगत सुनवाई का मौका भी देना चाहिए।
केंद्रीय बैंक (Central bank) ने यह भी कहा कि ऋणदाताओं को किसी अन्य ऋणदाता या परिसंपत्ति पुनर्निर्माण सुविधा में स्थानांतरित करने से पहले ‘जानबूझकर डिफ़ॉल्ट’ का निर्धारण करने या उसे खारिज करने के लिए किसी डिफ़ॉल्ट खाते की जांच पूरी करने की जरूरत होगी।
सर्कुलर में कहा गया ह…
सर्कुलर में कहा गया है, “निर्देशों का उद्देश्य जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों के बारे में ऋण संबंधी जानकारी प्रसारित करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करना है, ताकि ऋणदाताओं को यह सुनिश्चित किया जा सके कि आगे संस्थागत वित्त उन्हें उपलब्ध नहीं कराया जाए।”
RBI ने कहा कि हितधारक मसौदा नियमों पर 31 अक्टूबर तक ईमेल ([email protected]) के माध्यम से ‘मास्टर डायरेक्शन पर फीडबैक – विलफुल डिफॉल्टर्स (willful Defaulters) और बड़े डिफॉल्टर्स का उपचार’ विषय के साथ फीडबैक (feedback) दे सकते हैं।