मुंबई: राजनीति पूरी तरह संभावनाओं का खेल है और यहां कुछ भी अंतिम नहीं है। ऐसा ही कुछ आजकल शरद पवार (Sharad Pawar) के साथ हो रहा है।
राजनीति में हमेशा अपनी छवि कद्दावर की रखने वाले Sharad Pawar को आज अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है।
आलम यह है कि जिन लोगों को उन्होंने संरक्षण देकर आगे बढ़ाया उन्हीं लोगों द्वारा उन्हें एक तरीके से अपमानित किया जा रहा है।
बड़ा सवाल यह है कि उम्र में 83 के आंकड़े को छू रहे शरद पवार इन विपरीत परिस्थितियों को अब भी चुनौती दे पाएंगे, और क्या वह फिर से महाराष्ट्र की राजनीति (Politics of Maharashtra) में अपने उसी ‘साहेब’ वाले कद के रूप मे उभर पाएंगे।
अक्टूबर 1999 में पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सत्ता साझा करने के लिए सहमत हो गए
भले ही दोनों पक्ष इस बात से इनकार करें, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के कांग्रेस में विलय की संभावना पवार के लिए एक व्यावहारिक विकल्प है।
एक तरफ जब सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के राष्ट्रीय राजनीति से स्पष्ट रूप से बाहर निकल चुकी हैं तो ऐसे में 1999 में जिस वजह से NCP का गठन हुआ था, अब उसके औचित्य का कोई मतलब नहीं रह गया है।
शरद पवार ने तब सोनिया के विदेशी मूल को आधार बनाकर कांग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन उनके खिलाफ अपने भाषण के छह महीने के भीतर, अक्टूबर 1999 में पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सत्ता साझा करने के लिए सहमत हो गए थे।
2019-20 के दौरान कई बार विचार-विमर्श हो चुका
मूल संगठन यानी कांग्रेस में NCP के विलय की संभावनाओं पर 2019-20 के दौरान कई बार विचार-विमर्श हो चुका है। यह उस दौर की बात है कि जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) AICC प्रमुख थे।
उस दौरान राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय (महाराष्ट्र) स्तर पर नेतृत्व के मुद्दे पर बातचीत विफल हो गई थी, क्योंकि पवार सुप्रिया सुले को उभारना चाह रहे थे।
सुले के लिए उस समय NCP के अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल की मौजूदगी में एक शीर्ष नेता के रूप में उभरना कठिन था।
जाने-माने वकील माजिद मेमन वह शख्स थे जो दोनों पक्षों को करीब लाने की कवायद पर्दे के पीछे से ही कर रहे थे।