Sawan Special : आज सावन का दूसरा सोमवार है। वैसे तो इस महीने के हर दिन भगवान शिव की पूजा होती है, लेकिन सोमवार का व्रत विशेष माना जाता है। सोमवार का दिन भगवान शंकर को प्रिय है इसलिए शिव व्रत इस दिन किया जाता है।
पार्वती का तप
कहा जाता है कि सावन के महीने में ही शिव जी उनके तप से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इसके बाद पार्वती जी का शिव जी के साथ विवाह हुआ। तब से ये पूरा माह शिव जी और माता पार्वती दोनों का प्रिय माह बन गया।
महिलाएं करती हैं पूजा
सावन का महीना विवाहित स्त्रियों के लिए बहुत खास होता है। इस महीने महिलाएं शिव जी की पूजा अर्चना करके पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं और अपने लिए अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान मांगती हैं। सावन के महीने में महिलाओं के साथ साथ कुंवारी कन्याएं भी भगवान शिव जी की पूजा करती हैं। सोमवार का व्रत रखने से उन्हें सुयोग्य वर मिलता है।
प्रकृति का सौंदर्य
सावन में प्रकृति खिल उठती है। हर तरफ हरियाली रहती है। शास्त्रों में महिलाओं को भी प्रकृति का रूप माना गया है। सावन महीने में महिलाओं के लिए हरे रंग का विशेष महत्व होता है इसलिए सावन महोत्सव के जरिए महिलाएं हरे रंग का परिधान और शृंगार करना शुभ मानती हैं।
मेहंदी
सावन का महीना आते ही महिलाएं विशेष तौर पर साज-शृंगार करती हैं। ऐसे में प्रकृति से एकाकार होने के लिए महिलाएं मेहंदी लगाती हैं।
मान्यता है कि जिसकी मेहंदी जितनी रंग लाती है उसको उतना ही अपने पति और ससुराल का प्रेम मिलता है। मेहंदी दिमाग को शांत और तेज भी बनाती है। इसके अलावा मेहंदी रक्त संचार को भी नियंत्रण रखती है। कहते हैं सावन के महीने में हरे रंग का वस्त्र धारण करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है और पति-पत्नी के बीच स्नेह बढ़ता है।
उपवास
हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। सिर्फ सोमवार ही नहीं पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत दी गई है।
सोमवार को व्रत रखने के साथ ही कई लोग श्रावण मास में हर दिन उपवास रखते हैं। इस दौरान लिया जाने वाला आहार भी विशेष होता है। लोग हर दिन केवल एक बार भोजन लेते हैं। साबूदाना और कई तरह के फल इसमें लिए जाते हैं। फास्टिंग में जो भी आहार लिया जाता है उसमें नमक नहीं होता।
सेहत के लिए श्रेष्ठ
सावन के महीने में फास्टिंग करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है। सावन में मॉनसून पीक पर होता है। आसमान में बादल छाए रहते हैं। ऐसे महीने में सूर्य की रोशनी कम पड़ती है।
इससे हमारा पाचन तंत्र कमजोर होता है। इसलिए ऐसी चीजें खानी चाहिए जो आसानी से पच सके। हिन्दुओं में इसलिए शाकाहार भोजन लेने की पूरी सख्ती होती है। उपवास करने से पाचन तंत्र तो बेहतर होता ही है शरीर से टॉक्सिक चीजें भी बाहर हो जाती हैं।
समुद्र मंथन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सावन के महीने में ही समुद्र मंथन हुआ था। इस दौरान निकले विष या हलाहल को भगवान शिव ने पी लिया।
शिव ने इसे अपने गले में ही रखा। इस वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं। विष का असर इतना गंभीर था कि देव और असुरों ने भगवान शिव को पवित्र गंगा नदी का जल उन्हें अर्पित किया। इस तरह शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाने लगा।
मत्स्य पुराण और वामन पुराण की कथा के अनुसार मंदार पर्वत ही शिव की निवास स्थली थी। यहीं से रावण उन्हें उठाकर लंका ले जा रहा था लेकिन रास्ते में वर्तमान देवघर भूमि पर रख देने से भगवान भोलेनाथ वहीं स्थापित हो गए। इस तरह बाबा बैद्यनाथ धाम तीर्थ की स्थापना हुई।
शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद
पूजा में भगवान तथा देवों को चढ़ाया गया प्रसाद पवित्र, रोग-शोक नाशक तथा भाग्यवर्धक माना गया है, किंतु शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण करने से मना किया जाता है। हालांकि केवल कुछ परिस्थितियों में ही इस प्रसाद को ग्रहण करना निषेध है, कुछ शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहणीय है।
ऐसी मान्यता है कि भूत-प्रेतों का प्रधान माना जाने वाला गण ‘चण्डेश्वर’ भगवान शिव के मुख से ही प्रकट हुआ था, वह हमेशा शिवजी की आराधना में लीन रहता है और शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद उसी के हिस्से में जाता है। इसलिए अगर कोई इस प्रसाद को खाता है, तो वह भूत-प्रेतों का अंश ग्रहण कर रहा होता है। यही वजह है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद-नैवेद्य खाने से मना किया जाता है।
कौन सा प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है
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