निरसा (धनबाद): आदिवासियों का सोहराय पर्व 4 जनवरी से शुरू हो गया है। पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व का संबंध सृष्टि की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ है। आदिवासी समाज के इस महान पर्व को लेकर झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा आदि राज्यों में बहुत पहले से तैयारी प्रारंभ हो जाती है।
उत्सव की तरह मनाते हैं सोहराय पर्व
जनजातीय समाज में इस पर्व का बेहद खास महत्व है। जनजातीय समाज इस पर्व को उत्सव की तरह मनाता है। आदिवासी समाज की संस्कृति और सभ्यता काफी रोचक है। शांत चित्त स्वभाव के लिए जाना जाने वाला आदिवासी समुदाय मूलतः प्रकृति पूजक है।
जातीय समाज में मरांगबुरू का उच्च स्थान
आदिवासियों में सोहराय पर्व की उत्पत्ति की कथा भी काफी रोचक है। इसकी कथा सृष्टि की उत्पति से जुड़ी हुई है। आदिवासी समाज में प्रचलित कथा के अनुसार, जब मंचपुरी अर्थात् मृत्यु लोक में मानवों की उत्पत्ति होने लगी, तो बच्चों के लिए दूध की जरूरत महसूस होने लगी। उस काल खंड में पशुओं का सृजन स्वर्ग लोक में होता था। मानव जाति की इस मांग पर मरांगबुरु अर्थात आदिवासियों के सबसे प्रभावशाली देवता। यहां बताना यह जरूरी है कि शेष भारतीय समाज मरांगबुरू को शिव के रूप में देखता है, लेकिन जन जातीय समाज में मरांगबुरू का स्थान शिव से भी ऊपर है।