मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay high court) की औरंगाबाद पीठ ने 15 वर्षीय एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता (15 Year Old Minor Rape Victim) को उसके गर्भ में पल रहे 28 हफ्ते के भ्रूण को गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है।
हाईकोर्ट ने डॉक्टरों की इस राय के बाद यह कदम उठाया है कि गर्भावस्था के इस चरण में गर्भपात (Abortion) करने पर भी शिशु के जिंदा पैदा होने की संभावना है, जिसके कारण नवजात को देखभाल इकाई में भर्ती कराने की जरूरत पड़ेगी।
गर्भावस्था की अवधि पूरी होने के बाद प्रसव की अनुमति
जस्टिस आर वी घुगे और न्यायमूर्ति वाई जी खोबरागड़े (R V Ghuge and Justice Y G Khobragade) की पीठ ने 20 जून के अपने आदेश में कहा कि यदि गर्भपात की प्रक्रिया के बावजूद किसी बच्चे के जिंदा पैदा होने की संभावना है, तो वह बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए गर्भावस्था की अवधि पूरी होने के बाद प्रसव की अनुमति देगी।
हाईकोर्ट ने कहा कि नेचुरल डिलीवरी (Natural Delivery) सिर्फ 12 हफ्ते दूर है, ऐसे में बच्चे के स्वास्थ्य और डेवलपमेंट (Health and Development) को भी ध्यान में रखना होगा।
पीठ दुष्कर्म पीड़िता की मां की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अपनी बेटी के गर्भ में पल रहे 28 हफ्ते के भ्रूण को गिराने की अनुमति (Permission To Abort The Fetus) देने की अपील की थी।
चिकित्सा दल] ने कहा…
महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी बेटी इस साल फरवरी में लापता हो गई थी और तीन महीने बाद पुलिस ने उसे राजस्थान में एक व्यक्ति के साथ पाया था। उक्त व्यक्ति के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दुष्कर्म पीड़िता की जांच करने वाले चिकित्सा दल (Medical Team) ने कहा था कि अगर गर्भपात की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है, तो भी बच्चा जीवित पैदा हो सकता है और उसे नवजात देखभाल इकाई में भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी, साथ ही पीड़िता की जान को भी खतरा होगा।