रांची: अपने पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की तुलना में झारखंड में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में गिरावट आई है।
उक्त आशय की जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने लोकसभा में दी।
रांची के सांसद संजय सेठ ने अतारांकित प्रश्न काल में यह जानना चाहा था कि झारखंड सहित पूरे भारत में मातृ मृत्यु दर क्या है। बच्चों की मृत्यु दर क्या है और इसे रोकने के लिए सरकार कौन-कौन सी योजनाएं चला रही है।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पूरे भारत में 2015-17 में मातृ मृत्यु दर प्रति हजार पर 122 थी। वहीं दूसरी ओर 2016-18 में यह दर 113 पर आई। झारखंड में प्रति हजार पर मातृ मृत्यु दर 2015-17 में 76 थी जबकि 2016-18 में 71 होकर रह गई है।
झारखंड के पड़ोसी राज्यों बिहार में यह दर पहले 165 थी, अब 149 हुई है। उड़ीसा में पहले यह 168 थी, अब 150 हुई है। जबकि पश्चिम बंगाल में पहले 94 थी, अब 98 हुई है।
यानी पश्चिम बंगाल में मातृ मृत्यु दर के रिकॉर्ड में इजाफा हुआ है। शिशु मृत्यु दर को कम करने में केंद्र सरकार ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
2008 में शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 69 थी, यही 2018 में प्रति हजार बच्चों पर 36 होकर रह गई है। इसके लिए केंद्र सरकार ने कई प्रयास किए और कई तरह की योजनाएं भी चलाई।
भारत मातृ और शिशु मृत्यु दर कम हो, इसे लेकर सरकारी स्तर पर कई तरह के अभियान चलाए गए। वर्कशॉप के जरिए, कानूनी सलाह के जरिए,
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिए कई तरह की योजनाएं चली और उसका परिणाम यह हुआ कि हमें इस दर को रोकने में बड़ी सफलता हासिल हुई।
केंद्रीय मंत्री ने लिखित रूप से बताया कि 16 योजनाओं एवं अभियान के जरिए मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाई गई है, जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
आदिवासी क्षेत्रों में इस दर को कम किया जाए, इसके लिए बर्थ वेटिंग होम्स तैयार किए गए ताकि आदिवासी समाज में बच्चों का जन्म के साथ उनके स्वास्थ्य का रखरखाव बेहतर तरीके से हो सके।
इसके लिए कई स्थानों पर शिविर लगाए गए। ऐसी योजनाओं के क्रियान्वयन एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का काम और बेहतर तरीके से हो, इसके लिए देश के सभी राज्यों को पर्याप्त मात्रा में धनराशि भी उपलब्ध कराई गई।
वित्तीय वर्ष 2019-20 में झारखंड को 167 करोड़ रुपए की राशि दी गई, जबकि 2020-21 में 163 करोड रुपए की राशि प्रदान की गई।