ढाका: 1971 में हुए लिबरेशन वॉर के 49 साल बाद बांग्लादेश सरकार ने देश के लिए बलिदान देने वाले 1,222 शहीद बुद्धिजीवियों की प्राथमिक सूची को मंजूरी दे दी है।
रविवार को लिबरेशन वॉर अफेयर्स मिनिस्टर एकेएम मोजम्मल हकने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि इस महीने औपचारिक रूप से यह सूची जारी कर दी जाएगी।
हक ने ये घोषणा सोमवार को शहीद बौद्धिक दिवस से एक दिन पहले की है।
रविवार को राष्ट्रपति एम. अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शहीद बुद्धिजीवियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
हक ने कहा कि सूची को संकलित करने के लिए गठित की गई समिति की पहली बैठक में सूची को अप्रूव कर दिया गया था। मंत्री ने कहा, 1972 में 1,070 शहीद बुद्धिजीवियों की सूची प्रकाशित की गई थी।
बाद में डाक विभाग ने 152 शहीदों के डाक टिकट जारी किए। इसलिए हमें शहीद हुए 1,222 बुद्धिजीवियों की सूची मिली है जिसे हमने मंजूरी दे दी है।
ढाका के मीरपुर क्षेत्र में शहीद बुद्धिजीवियों की याद में बनाए गए स्मारक पर नेता और अन्य लोग अपनी श्रद्धांजलि देंगे।
बता दें कि जमात-ए-इस्लाम से संबंधित पाकिस्तानी सेना और उनके बंगाली भाषी सहयोगियों ने 25 मार्च, 1971 से शुरू हुए 9 महीने के लिबरेशन युद्ध के दौरान कई बुद्धिजीवियों को मार डाला था।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता से पहले 14 दिसंबर, 1971 को अल-बद्र और अल-शम्स बलों जैसे कुख्यात नाजी पार्टी के प्रमुखों ने राष्ट्र को बुद्धिहीनता की स्थिति में लाने के लिए डॉक्टरों, इंजीनियरों और पत्रकारों जैसे सबसे प्रख्यात शिक्षाविदों और पेशेवरों को मारने के लिए एक अभियान चलाया था।
बांग्लादेश सरकार और विजयी स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अंतिम क्रूर नरसंहार के बारे में तभी पता चला जब पाकिस्तानी सेना ने 16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र विंग इस्लाम छत्र संगठन से संबंधित पाकिस्तानी सेना के शीर्ष साथी छुप गए थे।
14 दिसंबर, 1971 को मारे गए लोगों में नेत्र विशेषज्ञ अलीम चौधरी और फजले रब्बी, पत्रकार शाहिदुल्लाह कैसर, सिराजुद्दीन हुसैन, सेलिना परवीन और साहित्यकार मोनियर चौधरी शामिल थे।
ज्यादातर पीड़ितों को ढाका में उनके घरों से उठाकर 10-14 दिसंबर, 1971 के बीच आंखों पर पट्टी बांधकर मार डाला गया था।
2009 में राज्य की सत्ता संभालने के बाद सत्तारूढ़ अवामी लीग ने बुद्धिजीवियों की हत्या और 1971 के युद्ध अपराधियों को न्याय के दायरे में ला दिया है।
जमात प्रमुख (आमिर) मतीउर्रहमान निजामी और महासचिव अली अहसन मोहम्मद मुजाहिद और अन्य सहायक सचिव जनरलों अब्दुल कादर मोल्ला और मोहम्मद कमरुजमैन पर पहले ही युद्ध अपराधों के आरोप साबित हो चुके हैं।
वहीं प्रधानमंत्री ने कहा है, जो लोग सीधे नरसंहार में शामिल थे उन पर ट्रायल चलते रहेंगे। उन्हें कोई छूट नहीं मिलेगी।
पूरी दुनिया में इतनी बेरहमी के साथ कोई नरसंहार कहीं नहीं हुआ होगा, जहां इतने कम समय में इतने सारे लोगों को मार दिया गया हो।
दुनिया का कोई भी ऐसा अखबार नहीं है जिसने इस नरसंहार की खबर न छापी हो।
बता दें कि 2017 से 25 मार्च को बांग्लादेश में नरसंहार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वहीं इस साल 14 दिसंबर के शहीद बौद्धिक दिवस के कार्यक्रम महामारी के कारण लागू दिशानिर्देशों के अनुसार किए जाएंगे।