गुरु गोबिंद सिंह के जन्मदिन को प्रकाश पर्व भी कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पौष माह, शुक्ल पक्ष, 1723 विक्रम संवत की सप्तमी तिथि को हुआ था।
जो सिखों के नानकशाही कैलेंडर के आधार पर यह पर्व हर साल अलग-अलग तिथियों पर पड़ता है। साल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित करते हुए गुरु परंपरा को खत्म किया था। सिखों के लिए ये घटना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। वहीं सिख समुदाय के लोग गुरु गोबिंद सिंह की जयंती को बड़े पर्व की तरह मनाते हैं।
पटना में हुआ था जन्म
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म पटना के पटना साहिब नामक जगह में हुआ था। उनका बचपन का नाम गोविंद राय था। उनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर था। उन दिनों मुगलों का कुरुर शाशक औरंगजेब का शासन था। जिसने इस्लाम को राजधर्म घोषित कर रखा था। वह जबरन हिंदुओं को इस्लाम धर्म मामने के लिए मजबूर करता था। औरंगजेब से प्रताड़ित लोग गुरु तेग बहादुर के पास फरियाद लेकर पहुंचे, लेकिन औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेज बहादुर का सरेआम सिर कटवा दिया था।
गुरु परंपरा को किया था खत्म
पिता के निधन के समय गोबिंद की उम्र सिर्फ 9 साल थी। फिर भी उन्हें तुरंत गुरु बना दिया गया। 11 नवंबर 1675 को गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु पद की जिम्मेदारी ली और उसके बाद से अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित करते हुए गुरु परंपरा को खत्म किया था। गुरु गोबिंद बहुत ही बड़े योद्धा होने के साथ ही महान विद्धान भी थे। उन्हें संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाओं का ज्ञान था। गुरु गोबिंद जी ने कई ग्रंथों की रचना की थी।
खालसा पंथ की स्थापना
गुरु गोबिंद जी ने खालसा पंथ की स्थापना आनंदपुर साहिब में 1699 को बैसाखी के दिन की थी। उन्होंने खालसा वाणी भी दी, जिसमें ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ कहा गया। उन्होंने पांच प्यारों को अमृत पान करवाकर खालसा बनाया और खुद भी उनके हाथों से अमृत पान किया था।
जीवन के पांच सिद्धांत
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ में जीवन के पांच सिद्धांत बताए हैं, जिन्हें पंच ककार के नाम से जाना जाता है। ये ‘क’ शब्द से शुरु होने वाले पांच सिद्धांत हैं, जिनका अनुसरण करना हर खालसा सिख के लिए अनिवार्य है। ये पांच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा.
धोखे से हत्या
धर्म, सच्चाई और सिखों की रक्षा करने वाले गुरु गोबिंद सिंह की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही थी शासक उनसे डरने लगे थे। यही वजह थी कि औरंगजेब की मौत के बाद नवाब वजीत खां ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या करा दी थी।
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