नयी दिल्ली: दुनियाभर की नदियों में दवाओं के अंश का पता लगाने के लिये किये गये शोध से यह खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान में लाहौर की रावी नदी दवा प्रदूषण से सर्वाधिक ग्रसित है।
इंग्लैंड की यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की नदियों में दवा प्रदूषण के स्तर का पता लगाने के संबंध में की गयी शोध रिपोर्ट अमेरिका की प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने प्रकाशित की है।
पाकिस्तान के समाचार पत्र डॉन के मुताबिक लाहौर से एकत्रित किये गये रावी नदी के नमूने में दवाओं के सर्वाधिक अंश पाये गये, जो पर्यावरण के साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक हैं।
नदियों के पानी में पैरासिटामोल, निकोटिन, कैफीन के अलावा मिर्गी और मधुमेह की दवाओं के अंश भी पाये गये हैं।
शोध रिपोर्ट में दवा प्रदूषण से सबसे अधिक ग्रसित नदियों में लाहौर की रावी नदी के बाद बोलिविया में ला पाज की नदी और इथियोपिया में आदिस अबाबा शहर की नदी सर्वाधिक प्रदूषित है जबकि आइसलैंड, नॉर्वे और अमेजन के जंगल में बहने वाली नदियां सबसे कम प्रदूषित हैं।
शोधकर्ताओं ने नदियों के नमूनों का अध्ययन करने के लिए दुनिया भर के 104 देशों में 1,052 साइट से पानी के नमूने एकत्रित किये। उन्होंने एकत्रित पानी के नमूनों में 61 सक्रिय दवाओं के अंश (एपीआई) का परीक्षण किया।
शोधकर्ताओं ने ये नमूने नदी के किनारे या शहरों, स्थानीय इलाकों आदि में बहने वाली नदी के पानी से इकट्ठा किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दवा प्रदूषण के मामले में सबसे अधिक प्रदूषित नदी लाहौर की रावी रही लेकिन सबसे अधिक प्रदूषित नमूना साइट बोलिविया में ला पाज का रियो सेक रहा।
रियो सेक में बिना किसी उपचार के सीवेज का गंदा पानी नदी में मिल रहा था और नदी के किनारे कचरे का निपटान किया जा रहा था।
शोध रिपोर्ट के अनुसार, दवा निर्माण संयंत्रों से निकले दूषित जल, बिना उपचार के सीवेज के पानी, शुष्क जलवायु और कचरा निपटान के तरीके का दवा प्रदूषण में मुख्य योगदान है।
जिन इलाकों में सीमित मानवजनित प्रभाव है , आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल कम होता है , अत्याधुनिक दूषित जल उपचार ढांचा है और नदियों में पर्याप्त बहाव है, वहां की नदियों में दवाओं का अंश कम मात्रा में पाया गया।
पाकिस्तान की पर्यावरणविद् आफिया सलाम ने रावी नदी में दवाओं के अंश के भारी मात्रा में पाये जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि देश में दूषित जल और उद्योग से निकले प्रदूषित जल के निपटान का कानून बना हुआ है लेकिन इन पर अमल नहीं होता है।
अगर पाक सरकार इन कानूनों को ठीक से लागू करेगी तो इससे भूमिगत जल और नदियों दोनों को लाभ होगा।