रांची: झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के आंदोलन को शांत करने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार को बड़ा निर्णय करना पड़ा है।
झारखंड सरकार ने भोजपुरी और मगही भाषा को धनबाद और बोकारो जिले से बाहर कर दिया है। अब जिलास्तरीय नियोजन में धनबाद और बोकारो जिले में भोजपुरी और मगही को मान्यता नहीं मिलेगी।
इसके साथ इस भाषा के जानकार शिक्षित युवाओं के लिए इन दो जिलों में जिलास्तरीय नियोजन का रास्ता बंद होने जा रहा है।
बताया जाता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस के दबाव के बाद आखिरकार धनबाद-बोकारो की क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को बाहर कर दिया गया।
सरकार ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली मैट्रिक-इंटर स्तरीय प्रतियोगिता परीक्षाओं में धनबाद-बोकारो में इस दोनों भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा की सूची में रखा था।
इस पर विवाद गहरा गया था। शुक्रवार देर रात कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी।
इसमें राज्य के शेष 22 जिलों के लिए जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
इससे पहले शुक्रवार शाम कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर, झामुमो विधायक सबिता महतो और पूर्व विधायक योगेंद्र महतो ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की थी।
इन नेताओं ने कहा था कि रांची और जमशेदपुर में भी भोजपुरी-मगही बोलने वाले लोग हैं लेकिन वहां इसे सूची में नहीं रखा गया।
धनबाद-बोकारो में इसे सूची में शामिल करने पर विवाद लगातार बढ़ रहा है। इस विवाद पर तत्काल रोक लगानी चाहिए। तब मुख्यमंत्री ने इसे सूची से हटाने का आश्वासन दिया था।
झामुमो के विधायक, शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो और विधायक मथुरा महतो भी इसके खिलाफ थे
जानकारी के अनुसार झामुमो के विधायक और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो और विधायक मथुरा महतो भी इसके खिलाफ थे।
दोनों ने मुख्यमंत्री से मिलकर धनबाद-बोकारो की क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी-मगही को हटाने की मांग की थी।
आजसू के सांसद-विधायक तो इस मुद्दे को लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गए थे। उन्होंने इसे हटाने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की थी।
इस विवाद को लेकर भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ रवींद्र कुमार राय की गाड़ी पर हमला भी हुआ था। आंदोलनकारियों ने गाड़ी को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
भाषा विवाद को लेकर कई दिनों से धनबाद-बोकारो में आंदोलन चल रहा था। अब यह आंदोलन इन दोनों जिलों से निकलकर पलामू प्रमंडल को भी चपेट में लेते जा रहा था।
जानकारों का कहना है कि भाषा विवाद का पूरा खेल वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा है। इसका वही नेता विरोध कर रहे थे, जिन्हें पता था कि इन दोनों के भाषा बोलने वालों का वोट उन्हें बहुत कम मिलता है।
धनबाद-बोकारो में ये शहरी इलाकों में ही सीमित है। थोड़े से वोट के लिए ये बड़े वर्ग को नाराज नहीं करना चाहते थे। इसी कारण झामुमो-आजसू नेता सबसे पहले खुलकर भोजपुरी-मगही के खिलाफ सामने आए।
अब तक मगही और भोजपुरी के समर्थक खुलकर सामने नहीं आ रहे थे। अब उन्हें सामने आना होगा। नहीं आने पर उन्हें भी इस दोनों भाषा बोलने वालों के वोट का नुकसान होगा।
इस मुद्दे पर कई पार्टियां अभी तक चुप्पी साधे हुए थी। उधर, अब भोजपुरी-मगही के समर्थक भी सरकार के इस फैसले के खिलाफ आंदोलन छेड़ सकते हैं।
भोजपुरी-मगही के विरोधियों का करेंगे विरोध: लालू प्रसाद
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने झारखंड में चल रहे भाषा विवाद पर कहा है कि जो मगही-भोजपुरी अंगिका का विरोध करेगा वह उसका विरोध करेंगे।
चारा घोटाला मामले में हाजिरी लगाने रांची पहुंचे लालू प्रसाद ने कहा कि भोजपुरी समाज किसी से डरता नहीं है, जो मंत्री इसका विरोध कर रहे हैं, उनका विरोध गलत है। हम उनका विरोध करेंगे।
लालू प्रसाद की पार्टी झारखंड में कांग्रेस के साथ हेमंत सोरेन की सरकार में शामिल है। रांची पहुंचने पर लालू प्रसाद ने इस मामले में पार्टी के झारखंड के नेताओं से इस फीडबैक लिया।
इसके बाद उन्होंने कहा कि जो मंत्री इसका विरोध कर रहे हैं, उनका विरोध गलत है। उन्होंने कहा कि यहां भोजपुरी, मगही का विरोध करने वालों का हम विरोध करेंगे।