नई दिल्ली: उत्तर रेलवे ने रेल संचालन के कायाकल्प के तहत, लोहे के भारी बक्से को हटाकर उसे हल्के ब्रीफकेस में तब्दील कर दिया है। अंग्रेजों के समय से चली आ रही परम्परा को अब आधुनिक बना दिया गया।
उत्तर रेलवे की तर्ज पर देशभर की रेल गाड़ियों में ये बदलाव किया जाएगा। दरअसल रेलगाड़ियों में गार्ड को अब भारी भरकम लोहे के बक्से लेकर नहीं चलना होगा।
गार्ड के काम को आसान बनाने के लिए रेलवे उनके भारी भरकम लोहे के बक्सों को प्लास्टिक के हल्के, छोटे ब्रीफकेस में तब्दील कर दिया है।
इस बदलाव के बाद इंजन में रेल चालक व अंतिम डिब्बे में सवार गार्ड को अब भारी भरकम लोहे के बक्से ले कर नहीं चलना होगा। रेल चालक व गार्ड के काम को रेलवे ने आसान बना दिया है।
पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरूआत उत्तर रेलवे में कर दी गई थी। इसके सफल रहने के बाद अब देशभर के सभी रेल नेटवर्क में इसको अमल में लाया जाएगा।
असल में पहले रेल चालक व गार्ड के बक्से के भारी होने की वजह ये होती थी कि बक्से में ट्रेन को चलाने के नियमों की किताब, लाल और हरी झंडी, लाइटें, इमरजेंसी लाइट व ट्रेन के परिचालन से संबंधित कुछ सामान होता है।
किसी भी रेल इंजन चालक व गार्ड को ट्रेन में जाने के पहले इन सामानों के साथ लोहे के इस बक्से को ट्रेन में चढ़ाना अनिवार्य होता था। लेकिन अब इसको पूरी तरह से आधुनिक कर दिया गया है।
अब सारे नियम एक टैबलेट में उपलब्ध करा दिए गए हैं। इसको ध्यान में रखते हुए इस रूल बुक व वकिर्ंग टाइम टेबल को डिजिटल बना कर एक टैबलेट में लोड कर इन गाडरें को दिया जा रहा है।
इतना ही नहीं, भारी भरकम लोहे की पेटी के बजाए एक छोटा ब्रिफकेस दिया जाएगा। इस निर्णय के बाद अब चालक व गार्ड को बक्से ट्रेन में चढ़ाने के लिए कर्मी नहीं लगाने होंगे।
इससे ट्रेन में यात्रा कर रहे यात्रियों को भी आसानी होगी। पहले ये भारी भरकम पेटी ट्रेन में आने-जाने वाले लोगों के लिए अक्सर परेशानी का कारण बनती रही है क्योंकि किसी भी गार्ड को ट्रेन में जाने के पहले इन सामानों के साथ बक्से को ट्रेन में चढ़ाना अनिवार्य होता है। सभी गाडरें को नौकरी ज्वाइन करते ही एक बक्सा दे दिया जाता है, जिसे उन्हें ड्यूटी के दौरान हमेशा साथ रखना होता है।