नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में यह स्पष्ट किया कि उसने कोविड-रोधी टीकाकरण अनिवार्य नहीं किया है और केवल इतना कहा है कि शत-प्रतिशत टीकाकरण होना चाहिए।
तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद तिवारी ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ से कहा कि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को आदेश जारी किया है कि 100 फीसदी लोगों का टीकाकरण होना चाहिए। इस पर केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह स्पष्टीकरण दिया।
कोविड-19 टीके पर नैदानिक आंकड़े और टीकाकरण के बाद के मामलों का खुलासा करने के अनुरोध वाली याचिका पर पीठ ने आदेश सुरक्षित रख लिया।
इस दौरान मेहता ने पीठ से कहा, ”माननीय एक स्पष्टीकरण…. कि तमिलनाडु राज्य का कहना है कि टीकाकरण को अनिवार्य किया गया है क्योंकि केंद्र ने 100 फीसदी टीकाकरण को कहा है।
यह अनिवार्य नहीं है। केंद्र ने कोई भी ऐसा आदेश जारी नहीं किया है, केंद्र का रुख ये है कि यह (टीकाकरण) शत-प्रतिशत होना चाहिए लेकिन अनिवार्य नहीं है।”
वहीं, महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने भी सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए सभी लोगों के टीकाकरण को अनिवार्य करने के राज्य सरकार के आदेश को उचित ठहराया।
टीका निर्माता कंपनी भारत बायोटेक लिमिटेड और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने भी याचिका का विरोध किया और कहा कि जनहित में होने का दावा करने वाली याचिका निजी मकसद से प्रेरित जान पड़ती है, जोकि खारिज किए जाने योग्य है।
कंपनियों ने कहा कि इस याचिका के कारण वैश्विक महामारी के बीच टीका संबंधी हिचकिचाहट बढ़ेगी।
भारत बायोटेक की ओर से अधिवक्ता ने दलील दी कि उसने अपने नैदानिक आंकड़ों के निष्कर्ष प्रमुख जर्नल के जरिए सार्वजनिक किए हैं और ये उसकी वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।
सीरम इंस्टिट्यूट की ओर से पेश अधिवक्ता ने भी नैदानिक आंकड़ों के निष्कर्षों का खुलासा करने का अनुरोध वाली याचिका खारिज करने का आग्रह किया है।