रामगढ़: राजस्थान की डॉ अर्चना शर्मा एक गर्भवती महिला की जान इलाज के दौरान नहीं बचा सकी, तो उसके खिलाफ गंभीर साजिश किए गए।नियम के विरुद्ध जाकर वहां की पुलिस ने उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया।
मृतका के परिजन हो या वहां के नेता, सभी लोगों ने चिकित्सक के साथ ऐसा व्यवहार किया की अर्चना शर्मा को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा।
आज अगर चिकित्सकों को न्याय के लिए आत्महत्या करना पड़े तो उससे ज्यादा गंभीर बात हो नहीं सकती है। शनिवार को यह बात प्रदर्शन के दौरान इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष डॉ एस पी सिंह ने कही।
संगठन ने डॉ अर्चना शर्मा को न्याय दिलाने के लिए शहर के थाना चौक पर प्रदर्शन किया।
इस दौरान संगठन के अध्यक्ष एसपी सिंह ने कहा कि चिकित्सक बीमार व्यक्ति को नई जिंदगी देने का काम करता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है जहां चिकित्सक भी इंसान की मदद नहीं कर पाते।
वह गर्भवती महिला पीपीएच का शिकार थी
कोई भी डॉक्टर नहीं चाहता कि उसके मरीज की मौत हो। लेकिन जिस तरह की परिस्थितियां उनके सामने आती हैं वह उसे मेडिकल साइंस के अनुरूप हैंडल करते हैं।
वह गर्भवती महिला पीपीएच का शिकार थी। प्रसव के बाद जब उसका रक्तस्राव नहीं रुका तो उसकी मौत हो गई। लेकिन चिकित्सक ने उसकी जान बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
लेकिन बाद में पुलिस, नेता और वहां के लोगों ने चिकित्सक पर इतना दबाव बना दिया कि वह अपनी जिंदगी खत्म करने के लिए आमदा हो गई। यह किसी भी तरीके से न्यायोचित नहीं है।
अर्चना शर्मा के पास जिस मरीज को लाया गया था वह दो अन्य अस्पतालों से लौटकर आ चुकी थी। उसकी हालत पहले ही काफी गंभीर थी।
ऐसी हालत में अगर कोई चिकित्सक किसी की जान बचाने की कोशिश करता है तो वैसे परिस्थिति में उसके खिलाफ कार्रवाई करना न्याय संगत नहीं है।
अगर उसे न्याय नहीं मिलता है और चिकित्सकों को कानूनी सहयोग नहीं मिलता है तो फिर देश के सारे अस्पताल बंद हो जाएंगे। सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
प्रदर्शन में डॉक्टर केएन प्रसाद, डॉ अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ भीम राम, डॉ राहुल बरेलिया, डॉ दिनेश कुमार, डॉक्टर मोहम्मद आर आजम, डॉक्टर इंद्रनाथ प्रसाद सहित कई लोग शामिल थे।