रांची: झारखंड हाई कोर्ट में बुधवार को जेएसएससी संशोधित नियमावली के खिलाफ दायर याचिका पर चीफ जस्टिस रवि रंजन और जस्टिस एसएन प्रसाद की बेंच में सुनवाई हुई।
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सरकार पक्ष से जानना चाहा कि हिंदी और अंग्रेजी को छोड़कर उर्दू को परीक्षा में शामिल किया है कि इसका डेटाबेस क्या है? क्या सरकार उर्दू को शामिल करने से पूर्व कोई डेटाबेस तैयार किया है?
मामले में राज्य सरकार का पक्ष मुकुल रोहतगी ने रखा। उन्होंने कोर्ट से समय मांगा। इस मामले से संबंधित सभी रिकार्ड कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।
मामले की अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी। इसके पूर्व की सुनवाई में संशोधित नियमावली को राज्य सरकार ने छात्र हित में बताया था।
हालांकि, इन सुनवाई की दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के प्रति नाराजगी व्यक्त की थी। इसमें कहा गया था कि नियमावली असंवैधानिक है। कोर्ट ने बताया था कि नियमावली रही तो आने वाली बहालियां भी प्रभावित होगी।
नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किये जाने की मांग है
जानकारी के अनुसार प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है।
याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है, जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है।
नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया है। जबकि उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है।
उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है। राज्य के सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम भी हिंदी है।
उर्दू की पढ़ाई एक खास वर्ग के लोग करते हैं। ऐसे में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी बाहुल अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है।
इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को निरस्त किये जाने की मांग है।