नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट JNU के शोध छात्र व सामाजिक कार्यकर्ता शरजील इमाम की जमानत याचिका पर 26 मई को सुनवाई करेगा।
इमाम ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले के बाद राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने हाल ही में देशद्रोह (राजद्रोह) के औपनिवेशिक युग के दंड देने वाले प्रावधान पर रोक लगा दी थी।
शरजील इमाम ने 2019 और 2020 में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली के जामिया इलाके में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों को लेकर हुई गिरफ्तारी के बाद अंतरिम जमानत की मांग की है।
पहले से लंबित याचिका में अंतरिम जमानत की मांग करने वाला उनका आवेदन 26 मई (गुरुवार) के लिए पोस्ट किया गया था, क्योंकि जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच मंगलवार को एक साथ इकट्ठा नहीं हो पाई।
मामले में जुड़े लगभग एक दर्जन लोगों में शामिल हैं
ताजा जमानत अर्जी में उन्होंने कहा कि चूंकि शीर्ष अदालत ने देशद्रोह (भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए) को स्थगित कर दिया है, इसलिए जमानत देने के लिए उनके मामले में सुधार हुआ है।
याचिका में कहा गया है, अपीलकर्ता को 28 जनवरी, 2020 से लगभग 28 महीने से कैद किया गया है, जबकि अपराधों के लिए अधिकतम सजा – 124-ए आईपीसी शामिल नहीं है- 7 साल की कैद ही है।
दिल्ली पुलिस के अनुसार, जेएनयू स्कॉलर और कार्यकर्ता इमाम और उमर खालिद 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े कथित बड़े षड्यंत्र के मामले में जुड़े लगभग एक दर्जन लोगों में शामिल हैं।
पुलिस के अनुसार, कथित रूप से भड़काऊ भाषणों के सिलसिले में इमाम और खालिद को इन आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में दंगे भड़क उठे थे, क्योंकि सीएए और एनआरसी के समर्थक और इनका विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हो गई, जिसने बाद में हिंसक रूप ले लिया था।
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली भारत यात्रा के समय यह घटना घटी थी, जिसमें 50 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और 700 से अधिक घायल हो गए थे।