खूंटी: अखंड सौभाग्य और परिवार की सुख-शांति की कामना को लेकर सोमवार को वट सावित्री (vat savitri) की पूजा-अर्चना की और पंडितों से सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी।
हिंदू धर्म में संहरागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत का खास महत्व है। जिला मुख्यालय के पुरातन महादंव मंडा, पिपराटोली, बाजार टांड़, तोरपा रोड सहित अन्य जगहों पर महिलाओं ने वट वृक्ष की पूजा की और पेड़ पर रक्षासूत्र बांध कर पति के दीर्घायु होने का वर मांगा।
पूजा-अर्चना के लिए श्रृंगार कर सुहागिन पूजन थाली, पंखा आदि लेकर विभिन्न बरगद पेड़ों के नीचे जमा होने लगी थीं।
सावित्री कथा के बारे में स्थानीय गणेश मंदिर के पुजारी सुनील मिश्र ने कहा कि स्कंध पुराण के अनुसार, भद्र देश में अश्व पति नामक राजा थे।
पंडितों से सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी
विवाह के काफी दिनों तक उनकी कोई संतान नहीं हुई, तो उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रति दिन एक लाख आहुतियों दीं।
यह क्रम 18 वर्षों तक जारी रहा। इससे माता सावित्री स्वयं वहां प्रकट होकर राजा अश्व पति को वरदान दिया कि तेरे घर में एक अत्यंत तेजस्विनी कन्या का जन्म होगा।
माता सावित्री के वरदान से उत्पन्न होने के कारण पिता ने अपनी पुत्री का नाम सावित्री ही रखा। वह अत्यंत रूपवती और गुणवान थी।
जब सावित्री बड़ी हो गयी, तो राजा अश्वपति ने वर की तलाश शुरू कर दी, पर सावित्री के लिए उन्हें कोई योग्य वर नहीं मिला, तो उन्होंने अपने पुत्री को स्वयं वर तलाशने को कहा।
वर की तलाश करते-करते सावित्री की नजर में जंगल में पेड़ से लकड़ी काट रहे सत्यवान नामक युवक पर पड़ी और उसने मन ही मन उसे अपना वर मान लिया।
ऋषिराज नारद को जब इस बात की जानकारी हुई, तो वे राजा अश्व पति के पास गये और उन्हें सत्यवान के बारे में बताया कि वह साल्व देश के राजा द्युमत्सेन का बेटा है।
पड़ोसी राजा ने उनका राज-पाट छीन लिया है और राजा परिवार के साथ जंगल में रहते हैं। नारद मुनि ने कहा कि सत्यवान की आयु मात्र एक साल है।
राजा अश्व पति ने सावित्री को सारी बात बताकर दूसरा वर चुनने को कहा। इस पर सावित्री ने कहा कि पिता जी, आर्य कन्याएं जिसे एक बार वरण कर लेती हैं। आजीवन उनके साथ रहती हैं।
सावित्री ने कहा कि वर का चयन, पंडित की प्रतिज्ञा और कन्यादान सिर्फ एक बार होता है। सावित्री की जिद के आगे राजा अश्व पति कुछ कह नहीं सके और सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
नारद के कहे अनुसार जब सत्यवान की मृत्यु की तिथि निकट आने लगी, तो सावित्री तीन पहले से ही अन्न-जल का त्यागकर भगवत भजन में लीन रहने लगी।
मृत्यु की नियत तिथि के दिन सत्यवान जंगल से लकड़ी लाने निकल गये। जब वह पेड़ पर चढ़कर लकड़ी काटने लगे, तो उन्हें चक्कर आने लगा और वे नीचे उतर गये। सावित्री समझ गयी कि अब सत्यवान का अंत निकट आ गया है।
सावित्री पति का सिर गोदी में लेकर भगवान का स्मरण करने लगी। उसी समय यमराज वहां पहुंचे और सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पछे-पीछे चलने लगी।
यमराज ने उन्हें विधि का विधान समझाकर वापस लौट जाने को कहा, लेकिन सावित्री मानने को तैयार नहीं हुई। इस पर यमराज ने सावित्री से वर मांगने को कहा।
इस पर सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर जो दृष्टिहीन हैं, उन्हें आंखों की ज्योति मिल जाए। यमराज ने तथास्तु कह कर वापस जाने को कहा। इस पर भी सावित्री नहीं लौटी।
यमराज ने उन्हें एक और वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने सास-ससुर की राज सत्ता वापस देने का वरदान मांगा। यमराज ने वह वर भी दे दिया।
इसके बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलने लगी। जब यमराज ने मना किया, तो सावित्री ने कहा कि पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। इससे यमराज नाराज हो गये।
उन्होंने कहा कि आखिरी बार एक वरदान और मांग लो। इस पर सावित्री ने पुत्रवान और सौभग्यवती होने का वरदान मांगा।
नारद के मुंह से भी तथास्तु निकल गया, तब सावित्री ने कहा कि महाराज, आप तो मेरे पति को ले जा रहे हैं, तो फिर मैं पुत्रवान और सौभाग्यवती कैसे रहूंगी।
बाद में नारद ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिये और वरदान दिया कि ज्येष्ठ महीने के अमावस्या की तिथि को तुम अपने पति को मौत से लौटा लायी हो।
इसलिए इस दिन जो सुहागिन महिलाएं वट सावित्री का व्रत कर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनेंगी, उन्हें अखंड सौभाग्य और संतति की प्राप्ति होगी।