रांची/नई दिल्ली: मुख्यमंत्री Hemant Soren ने कहा कि झारखंड का गठन ही जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हुआ है लेकिन यहां जितनी भी कंपनियां खनन एवं उद्योग लगाने आईं उन सभी ने बस यहां जल, जंगल और जमीन का दोहन किया है।
किसी भी खनन कंपनी द्वारा Mining करके जमीन को रिक्लेम करने का प्रयास नहीं हुआ है। कभी भी विस्थापितों की समस्या को दूर करने का सही से प्रयास नहीं हुआ।
झारखंड के खनिज एवं वन संपदाओं का देश के विकास में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है परन्तु झारखण्ड के आदिवासी और मूलवासी ने हमेशा अपने को ठगा हुआ महसूस किया।
मुझे लगता है कि खनिज संपदा के उत्खनन से प्राप्त आय का अधिकाधिक हिस्सा Jharkhand जैसे राज्य को प्राप्त होना चाहिए परन्तु पिछले कुछ वर्षों में जो नीतिगत परिवर्तन हुए हैं वो ठीक इसके विपरीत साबित हुए हैं।
सभी प्रयासों का फलाफल अभी तक शून्य रहा
उदाहरण के लिए GST लागू होने से झारखंड को काफी घाटा हुआ है लेकिन उसकी भरपाई करने का प्रयास समुचित तरीके से नहीं किया गया है।
सोरेन ने कहा कि झारखंड राज्य में विभिन्न खनन कंपनियों की भू अर्जन, रॉयल्टी इत्यादि मद में करीब एक लाख छत्तीस हज़ार करोड़ रुपये बकाया है लेकिन खनन कंपनियों इसके भुगतान में कोई रुचि नहीं दिखा रही है।
हम लोगों ने विभिन्न बैठकों में इस विषय को उठाया है तथा इस संबंध में पत्राचार भी किया है लेकिन हमारे सभी प्रयासों का फलाफल अभी तक शून्य रहा है।
झारखंड को ये बकाया राशि का भुगतान कराने का निर्देश इन खनन कंपनियों को केंद्र सरकार दे, जिससे कि राज्य के लोगों के सर्वांगीण विकास (All round development) में इस राशि का उपयोग किया जा सके।