रांची: झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) में बुधवार को झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली 2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी हो गई।
Court ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। रमेश हांसदा एवं अन्य की ओर से इस संशोधित नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई हाई कोर्ट (HC) के मुख्य न्यायधीश Dr. रवि रंजन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में हुई।
JSSC स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली संवैधानिक रूप से सही है
मामले में राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट (SC) के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा कि JSSC स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली संवैधानिक रूप से सही है।
यह भी बताया गया कि JSSC ने नियमावली में संशोधन के माध्यम से यहां की रीति रिवाज और भाषा को परखने के लिए एक मापदंड तैयार किया है
हिंदी और अंग्रेजी को क्वालीफाइंग पेपर वन में रखा गया है। स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए भाषा के पेपर दो से हिंदी या अंग्रेजी को हटाया गया।
भाषा के पेपर से हिंदी व अंग्रेजी को हटाया जाना अनुचित है
पूर्व की सुनवाई में प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता कुमार हर्ष ने Court को बताया कि नियमावली में झारखंड के शिक्षण संस्थाओं से मेट्रिक और इंटर की परीक्षा पास करना अनिवार्य है।
साथ ही स्थानीय भाषा, रीती रिवाज की भी जानकारी जरुरी है लेकिन आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के मामले में यह प्रावधान शिथिल रहेगा। ऐसे में उन्हें आरक्षण के बाद अतिरिक्त लाभ देने का कोई औचित्य नहीं है।
हिंदी को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी से निकाल दिया गया है। भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को हटाया जाना अनुचित है, क्योंकि राज्य में सबसे ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं।
यह भी कहा गया गया कि राज्य सरकार की ओर से संशोधित नियुक्ति नियमावली में लगाई गई शर्तों के कारण वैसे अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं, जिन्होंने राज्य के शिक्षण संस्थाओं से स्नातक की Degree हासिल की है लेकिन उन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा दूसरे राज्यों में से पास की है।
प्रार्थी की ओर से झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) की संशोधित नियुक्ति नियमावली को रद्द करने का आग्रह HC से किया गया है। कहा गया है की इस नीति से झारखंड के लोग हैं अपने राज्य में नौकरी हासिल नहीं कर सकते हैं, यह भेदभाव वाली नीति है।