नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर केंद्र सरकार को Notice जारी किया है।
चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को 2 हफ्ते में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। Court ने जमीयत उलेमा ए हिंद की कानून के समर्थन में दाखिल याचिका पर भी Notice जारी किया। Court ने 11 अक्टूबर को अगली सुनवाई करने का आदेश दिया।
काशी रियासत के पूर्व शासक काशी में सभी मंदिरों के मुख्य संरक्षक थे
आठ सितंबर को काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्ण प्रिया ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) को चुनौती देने वाली नई याचिका दायर की।
याचिका में कहा गया है कि काशी रियासत के पूर्व शासक काशी में सभी मंदिरों के मुख्य संरक्षक थे, इसलिए काशी शाही परिवार की तरफ से उनके पास इस अधिनियम को चुनौती देने का अधिकार है।
एक याचिका वकील करुणेश कुमार शुक्ला ने दायर की है। करुणेश कुमार शुक्ला अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में पुजारी भी रह चुके हैं। करुणेश शुक्ला कृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं और वह राम जन्मभूमि मामले में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं।
करुणेश शुक्ला के पहले प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) को कई याचिकाकर्ताओं ने SC में चुनौती दी है। एक याचिका 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने वाले रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा ने याचिका दाखिल की है।
धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं
याचिका में कहा गया है कि यह कानून विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक पूजा, तीर्थस्थलों पर कब्जा करने को कानूनी दर्जा देता है।
हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इसके पहले मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने भी याचिका दायर कर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी है।
26 मई को वकील रुद्र विक्रम सिंह ने भी याचिका दायर कर कहा है कि 15 अगस्त, 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई। याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है।
ये धाराएं संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गौरतलब है कि 25 मई को वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने याचिका दायर कर इस Act को चुनौती दी है। स्वामी जीतेंद्रानंद ने कहा है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है।
यह हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) को चुनौती देने वाली एक याचिका भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी दायर की है। 12 मार्च, 2021 को मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर Notice जारी हुआ था।
याचिका में कहा गया है कि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त, 1947 वाली बनाए रखने को कहता है। यह हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है।
इस एक्ट में अयोध्या को छोड़कर देश में बाकी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है, जैसा 15 अगस्त, 1947 को था।
हिंदू पुजारियों (Hindu Priests) के संगठन विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को SC में चुनौती दी है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट (SC) में लंबित है।
विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका का विरोध करते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी SC में याचिका दायर की है। एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है।