नेवादा: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA का अगला मिशन, शनि ग्रह के बर्फीले चंद्रमा टाइटन पर भेजा जाएगा। टाइटन पर जाने वाला NASA का हेलिकॉप्टर ड्रैगनफ्लाई (Dragonfly) बर्फीली रेत पर उतरेगा।
वैज्ञानिक इसकी लैंडिंग के लिए समुचित जगह की खोजबीन में लगे हैं। खोजबीन कैसिनी स्पेसक्राफ्ट से मिले डेटा के हिसाब से हो रही है। नासा सन 2027 में ड्रैगनफ्लाई को शनि ग्रह के लिए लॉन्च करेगा।
यह हेलिकॉप्टर सन 2034 में यानी 8 साल बाद शनि ग्रह के चंद्रमा टाइटन (Moon Titan) के चारों तरफ चक्कर लगाना शुरू करेगा। इसके बाद इसे पैराशूट की मदद से उतारा जाएगा।
यह किसी भी पहिए वाले रोवर की तुलना में ज्यादा इलाका कवर कर सकेगा। यह एक बार उड़ान भरेगा तो आधे घंटे में 16 किमी की दूरी कवर कर लेगा।
इसका मिशन दो साल का होगा। यानी यह दो साल तक शनि ग्रह के बर्फीले चंद्रमा टाइटन (ICY Moon Titan) पर उड़ान भरता रहेगा।
ड्रैगनफ्लाई की लैंडिंग के लिए सबसे सटीक जगह
टाइटन की बर्फीली सतह पर लैंडिंग आसान नहीं होगी, क्योंकि वहां पर घने हाइड्रोकार्बन का (Hydrocarbon) कोहरा फैला रहता है। फिर भी नासा ने जो जगह लैंडिंग के लिए तय की है, वह है शांगरीला।
यह एक बर्फीला रेतीला मैदान है, एक 80 किलोमीटर व्यास वाले क्रेटर सेल्क में बना है। इस क्रेटर की तस्वीर NASA के कैसिनी स्पेसक्राफ्ट ने साल 2004 से 2017 के बीच ली थी।
तस्वीर लेने वाली टीम के प्रमुख कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के प्लैनेटरी साइंटिस्ट ली बोनेफॉय ने इस जगह को ड्रैगनफ्लाई की लैंडिंग के (Dragonfly Landing) लिए सबसे सटीक जगह बताई है।
हाइड्रोकार्बन की धुंध पर असर पड़ता है
ली बोनेफॉय ने कहा कि ड्रैगनफ्लाई जहां जा रहा है वह वैज्ञानिक तौर पर वह बहुत महत्वपूर्ण है। ड्रैगनफ्लाई टाइटन के भूमध्यरेखा के पास स्थित एक सूखे इलाके में उतरना है।
इस जगह पर कई बार लिक्विड मीथेन की बारिश होती है। लेकिन यह धरती के रेगिस्तान की तरह ही दिखता है। छोटे पहाड़ हैं। इम्पैक्ट क्रेटर हैं।
सेल्क बेहद रुचिकर लोकेशन है। इसकी भौगोलिक तौर पर काफी उम्र है। ये कुछ करोड़ साल पुराना ही है। इम्पैक्ट की वजह से बर्फ पिघलती है और गड्ढे में जम जाती है। इसकी वजह से हाइड्रोकार्बन की धुंध पर असर पड़ता है।
1000 फीट प्रति पिक्सल तक की ही फोटो ले पाया
अंतरिक्ष में जीवों की स्टडी करने वाले एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट्स का (Astrobiologists) मानना है कि अगर टाइटन के वायुमंडल की सटीक जानकारी मिले तो वहां पर जीवन की खोज संभव होगी।
भविष्य में वहां जा कर रहा जा सकता है। कैसिनी ने उतनी दूर जाकर अच्छा काम किया है, लेकिन उसकी भी एक क्षमता थी। वह 1000 फीट प्रति पिक्सल तक की ही फोटो ले पाया। हो सकता है कि कई छोटी नदियों और नजारों को हम देख ही न सके हों।
मीथेन की नदियां बहती हैं
वैज्ञानिकों को पता है कि टाइटन पर कई नदियां हैं। यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के ह्यूजेंसन लैंडर जो कैसिनी की पीठ पर लदकर गया था।
उसने जनवरी 2005 में लैंडिंग से पहले नदियों की तस्वीरें दिखाई थीं। सारी नदियों में पानी नहीं था, लेकिन तापमान माइनस 179 डिग्री सेल्सियस था।
यानी इस स्थिति में वहां पानी हो ही नहीं सकता। इसका मतलब वहां पर मीथेन की नदियां बहती हैं। मीथेन की बारिश होती है। जो पानी को साफ करती रहती हैं।