रांची: मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) की घटनाओं (Events) पर अंकुश लगाने और ऐसी वारदात के अभियुक्तों को सख्त सजा दिलाने के उद्देश्यों के साथ झारखंड सरकार (Government of Jharkhand) ने 21 दिसंबर 2021 को विधानसभा (Assembly) में एक विधेयक पारित किया था।
इस Bill में यह प्रावधान किया गया है कि 2 या इससे अधिक व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली हिंसा को मॉब लिंचिंग माना जाएगा और इसके लिए उम्रकैद (Life Prison) के साथ-साथ 25 लाख रुपये तक के जुर्माने की सजा होगी।
तकरीबन 15 महीने गुजर चुके हैं, लेकिन यह विधेयक आज तक कानून का रूप नहीं ले सका है।
राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया
वजह यह कि तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने इस विधेयक को मंजूरी देने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह कहते हुए विधेयक सरकार को लौटा दिया गया कि इसमें मॉब लिंचिंग को सही तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है। इसके अलावा उन्होंने विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप में अंतर पर भी आपत्ति जताई थी।
जब यह विधेयक पारित कराया जा रहा था, तब राज्य के संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा था कि ऐसी घटनाओं में कमजोर वर्ग के लोग हिंसा के शिकार होते रहे हैं। यह कानून पीड़ितों को संरक्षण देने और ऐसे कृत्य को अंजाम देने वाले तत्वों को सख्त सजा दिलाने के लिए बनाया जा रहा है।
चार विधेयक विधानसभा से दुबारा पारित कराए गए
दूसरी तरफ विधानसभा में BJP के विधायकों ने यह कहते हुए सदन का बहिष्कार किया था कि इसके पीछे सरकार की तुष्टिकरण (Appeasement) की नीति है। भाजपा के विरोध-बहिष्कार के बावजूद विधेयक पारित तो हुआ, लेकिन Governor की मंजूरी न मिलने से यह कानून का रूप नहीं ले सका।
दरअसल झारखंड सरकार की ओर से पिछले डेढ़ साल में पारित आधा दर्जन विधेयक राजभवन की आपत्तियों के कारण कानून का रूप नहीं ले सके। चार विधेयक विधानसभा से दुबारा पारित कराए गए, तब जाकर उन्हें राज्यपाल की मंजूरी मिली।
कुछ विधेयक तो ऐसे हैं, जिन्हें राज्यपाल ने सरकार को बार-बार लौटा दिया
Ramesh Bais करीब एक साल आठ महीने तक झारखंड के राज्यपाल रहे और उन्होंने विधानसभा में पारित दस Bills को बगैर मंजूरी सरकार को लौटा दिया। कुछ विधेयक तो ऐसे हैं, जिन्हें राज्यपाल ने सरकार को बार-बार लौटा दिया और वे कानून का रूप नहीं ले पाए।
मसलन बीते 9 फरवरी को तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने Jharkhand Assembly से पारित झारखंड वित्त विधेयक 2022 को तीसरी बार राज्य सरकार को लौटाया। राज्यपाल ने तीसरी बार विधेयक लौटाते हुए अपनी टिप्पणी में लिखा कि इस विधेयक में उल्लिखित बिंदुओं और विवरणों की गंभीरतापूर्वक समीक्षा की जाए कि यह भारत के संविधान की अनुसूची सात के अंतर्गत राज्य सूची में समाहित है अथवा नहीं।
राज्यपाल ने इस विधेयक को फिर वापस कर दिया
इसके पहले राज्यपाल ने विधेयक के हिन्दी और अंग्रेजी संस्करण में अंतर बताते हुए इसे सरकार को वापस कर दिया था। उसके बाद राज्य सरकार ने विधेयक को संशोधित कर राज्यपाल के पास सहमति के लिए भेजा।
दूसरी बार Governor ने इस विधेयक को फिर वापस कर दिया और यह कहा कि संशोधित विधेयक को झारखंड विधानसभा से पुन: पारित कराकर अनुमोदन प्राप्त करने के लिए भेजें। अब सरकार यह विधेयक फिर से पारित करा कर चौथी बार राज्यपाल को भेजने की तैयारी कर रही है।
सरकार ने इस बिल को ऐतिहासिक फैसला बताया
बीते 29 जनवरी को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस (Governor Ramesh Bais) ने एक और तगड़ा झटका दिया।
उन्होंने राज्य सरकार द्वारा Assembly का विशेष सत्र बुलाकर पारित कराए गए Domicile Policy के विधेयक को यह कहते हुए लौटा दिया कि यह संविधान के प्रावधान तथा उच्चतम न्यायालय के आदेश के विपरीत है।
हेमंत सोरेन सरकार (Hemant Soren Govt.) ने बीते वर्ष 11 नवंबर को विधानसभा का एकदिवसीय विशेष सत्र बुलाकर यह विधेयक पारित किया था। सरकार ने इस बिल को ऐतिहासिक फैसला बताया था।
इस फैसले को राज्य की स्थानीय जनता के हक में सबसे ठोस कदम बताते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पूरे राज्य में यात्रा निकाल रहे थे, उसी वक्त राज्यपाल द्वारा विधेयक लौटाए जाने से सत्तारूढ़ गठबंधन के कदम ठिठक गए।
दूसरा विधेयक पांच महीने से राजभवन में
हालांकि कुछ दिनों बाद झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने भी इस बिल को संविधान के विपरीत बताते हुए इसे निरस्त करने का आदेश दिया।
झारखंड सरकार ने विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान डोमिसाइल बिल के अलावा राज्य में OBC , SC एवं ST आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने का भी विधेयक पारित किया था। यह दूसरा विधेयक पांच महीने से राजभवन में है और इसपर राज्यपाल की सहमति या असहमति अब तक नहीं मिली है।
दूसरे विधेयक पर अब भी निर्णय का इंतजार
इस Bill को सहमति प्रदान करने और इसे केंद्र सरकार के पास भेजने की मांग को लेकर झारखंड (Jharkhand) के CM हेमंत सोरेन के नेतृत्व में 40 सदस्यों वाले बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल (Multi-Party Delegation) ने बीते साल 20 दिसंबर को राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की।
इसके एक महीने बाद राज्यपाल ने डोमिसाइल विधेयक (Domicile Bill) तो सरकार को लौटा दिया, लेकिन दूसरे विधेयक पर अब भी निर्णय का इंतजार है।
इसके पहले बीते नवंबर महीने में राज्यपाल ने झारखंड उत्पाद (संशोधन) विधेयक 2022 को कई आपत्तियों के साथ राज्य सरकार को पुनर्विचार के लिए लौटाया था। उन्होंने विधेयक में आठ बिंदुओं पर सुधार की संभावना जताते हुए सरकार को सुझाव दिए।
निगम की ओर से पदाधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए: राज्यपाल
राज्यपाल ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि विधेयक में राज्य सरकार के नियंत्रण वाले निगम की एजेंसियों द्वारा संचालित लाइसेंसी शराब दुकानों (Liquor Stores) में किसी तरह के अवैधानिक कृत्यों के लिए कर्मचारियों को जिम्मेदार ठहराए जाने का प्रावधान है, जबकि ऐसे मामलों में निगम की ओर से अधिकृत एजेंसियों और उनके पदाधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। इस प्रावधान से ऐसा लगता है कि उच्चाधिकारियों के अवैधानिक कृत्यों को संरक्षण देने का प्रयास किया जा रहा है।
इसी तरह बीते साल सितंबर में GST लागू होने के पहले टैक्सेशन (Taxation) से जुड़े विवादों के समाधान से संबंधित विधेयक को इसके हिंदी और अंग्रेजी प्रारूपों (English Formats) में अंतर की वजह से लौटाया था।
विधेयक झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र में पारित हुआ
इस विधेयक का नाम है झारखंड कराधान अधिनियमों की बकाया राशि का समाधान बिल, 2022। यह विधेयक झारखंड विधानसभा (Jharkhand Assembly) के मॉनसून सत्र में पारित हुआ था। उन्होंने सरकार से कहा था कि अंग्रेजी-हिंदी ड्राफ्ट में अंतर और गड़बड़ियों को ठीक करने के बाद वापस विधानसभा से पारित कराकर स्वीकृति के लिए भेजें।
मई महीने में झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (Jharkhand State Agricultural Produce and Livestock Marketing) (संवर्धन और सुविधा) विधेयक-2022 सरकार को लौटाते हुए राज्यपाल ने भाषाई विसंगतियों के दस बिंदुओं पर आपत्ति जताई थी।
इस विधेयक में State Government ने मंडियों में बिक्री के लिए लाये जाने वाले कृषि उत्पादों पर 2 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान किया है। विधेयक जब तक दुबारा पारित नहीं होता, यह कानून का रूप नहीं ले पाएगा।
विधेयक दोबारा पास कराए गए
पिछले साल अप्रैल (April) महीने में राजभवन ने भारतीय मुद्रांक शुल्क अधिनियम (Indian Stamp Duty Act) में संशोधन विधेयक 2021 को सरकार को लौटा दिया था।
राजभवन ने सरकार को लिखे पत्र में बताया था कि विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में समानता नहीं है। इससे विधेयक के प्रावधानों को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है। बाद में सरकार ने इसे दोबारा विधानसभा से पारित कराया तो राज्यपाल ने इसे मंजूरी दे दी।
इसी तरह पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय (Pandit Raghunath Murmu Tribal University) की स्थापना से जुड़ा विधेयक और झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2022 भी Governor ने पहली बार आपत्तियों के साथ लौटा दिए थे।
ये विधेयक दोबारा पास कराए गए, तब इनपर राज्यपाल की मुहर लगी।