वाशिंगटन/बीजिंग: अमेरिकी पहल (American Initiative) पर हो रहे लोकतंत्र शिखर सम्मेलन (Summit of Democracies) में ताइवान को बुलाने से चीन भड़क उठा है। इस सम्मेलन (Conference) में दुनिया भर के 121 देशों को आमंत्रित किया गया है, लेकिन रूस और चीन को न्योता नहीं मिला है।
अमेरिका की पहल मंगलवार से तीन दिन का लोकतंत्र शिखर सम्मेलन (Democracy Summit) शुरू हो रहा है। इस सम्मेलन में अमेरिका (America) के साथ दक्षिण कोरिया, जाम्बिया, कोस्टारिका और नीदरलैंड सह-मेजबान की भूमिका में हैं।
दिसंबर 2021 में हुए पहले शिखर सम्मेलन में 113 देशों ने हिस्सा लिया था। इस बार इसमें 121 देश आमंत्रित किये गए हैं। सम्मेलन को ज्यादातर आमंत्रित नेता वर्चुअल (ONLINE) माध्यम से संबोधित करेंगे। इस सम्मेलन को लेकर चीन का गुस्सा मुखर होकर सामने आया है।
चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता
दरअसल, सम्मेलन में चीन और रूस (China and Russia) को तो आमंत्रित ही नहीं किया गया है, बल्कि ताइवान (Taiwan) को बुलाया गया है। चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और ताइवान के मसले पर अमेरिका के साथ चीन का मतभेद जगजाहिर है।
अब China ने इस आयोजन को ही कठघरे में खड़ाकर आरोप लगाया है कि इस आयोजन के जरिए अमेरिका दुनिया में विभाजन को चौड़ा कर रहा है।
चीन ने अमेरिका की ‘दादागीरी’ का विरोध किया
माना जा रहा है कि चीन को तानाशाह देश बता कर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, चीन और उसके साथी देशों को घेरने की रणनीति के तहत इस शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं।
इसके जवाब में चीन ने 100 देशों के 300 मेहमानों को बुलाकर अमेरिका की ‘दादागीरी’ का विरोध किया। चीन के इस आयोजन में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य ली शुलेई ने कहा कि अमेरिका स्वयंभू जज के रूप काम करते हुए यह तय कर रहा है कि कौन देश लोकतांत्रिक (Democratic) है और कौन नहीं।
अमेरिकी लोकतंत्र गिरावट के दौर में
चीन के विदेश मंत्रालय (Foreign Ministry) ने एक दस्तावेज जारी कर कहा कि अमेरिकी लोकतंत्र (American Democracy) गिरावट के दौर में है, जबकि अमेरिका (America) दुनिया भर में तनाव और अफरातफरी फैलाने में लगा हुआ है।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि अमेरिका दुनिया के लिए कभी वरदान नहीं, बल्कि वह एक अभिशाप रहा है।
साथ ही दक्षिण अफ्रीका में चीनी राजदूत चेन शियाओदोंग ने आरोप लगाया कि अमेरिका लोकतंत्र शिखर सम्मेलन के जरिए दुनिया में विभाजन पैदा कर अपनी दादागिरी जारी रखना चाहता है।