Menstrual Hygiene : Supreme Court ने सोमवार (10 अप्रैल) को केंद्र सरकार को मेंसुरल (मासिक धर्म) हाईजीन (Menstrual Hygiene) पर एक समान राष्ट्रीय नीति (National Policy) लागू करने का निर्देश दिया है।
इसमें छात्रों को मुफ्त सैनिटरी पैड दिया जाना भी शामिल है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) DY चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिंहा और JP पारदीवाला की पीठ ने सभी राज्यों से स्कूलों (Schools) में गर्ल्स टॉयलेट की उपलब्धता और मेंसुरल प्रोडक्ट/सैनिटरी पैड (Menstrual Products/Sanitary Pads) की आपूर्ति के बारे में जानकारी देने को कहा है।
पीठ ने स्वास्थ्य मंत्रालय को दिया निर्देश
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘केंद्र को सभी राज्यों के साथ मिलकर यह देखना चाहिए कि एक समान राष्ट्रीय नीति (Uniform National Policy) लागू की जाए ताकि राज्य समायोजन के साथ इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।
हम सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के सचिव, स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश देते हैं कि वे चार सप्ताह के भीतर मेंसुरल हाईजीन पॉलिसी को अपने स्वयं के कोष से लागू करें।’
केंद्र सरकार ने कोर्ट में रखा पक्ष
भारत सरकार की तरफ से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी (Aishwarya Bhati) ने कोर्ट को बताया कि यदि राज्य मौजूदा नीतियों के बारे में जानकारी मुहैया कराएं तो केंद्र एक समान मॉडल पेश कर सकता है।
कक्षा 6 से 12 तक पढ़ने वाली प्रत्येक बालिका को मुफ्त सैनिटरी पैड
Supreme Court में एक याचिका दायर कर केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कक्षा 6 से 12 तक पढ़ने वाली प्रत्येक बालिका को मुफ्त सैनिटरी पैड (Free Sanitary Pad) उपलब्ध कराने और सरकारी और आवासीय विद्यालयों में लड़कियों के शौचालयों के प्रावधान के निर्देश देने की मांग की गई है।
अपर्याप्त मेंसुरल हाईजीन प्रबंधन शिक्षा के लिए एक बड़ी बाधा
वकील वरिंदर कुमार शर्मा (Varinder Kumar Sharma) के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि Inadequate Menstrual Hygiene Management शिक्षा के लिए एक बड़ी बाधा है।
स्वच्छता सुविधाओं (Sanitary Facilities) तक पहुंच की कमी, मासिक धर्म उत्पादों और मासिक धर्म से जुड़े सामाजिक व्यवहार के कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं।
याचिका पर कोर्ट ने दिया निर्देश
याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Ministry of Health) द्वारा गठित मिशन संचालन समूह को राष्ट्रीय दिशानिर्देशों का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कोर्ट ने स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव को भी नामित किया।
इसके पहले एक अप्रैल को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और जल शक्ति मंत्रालय (Ministry of Jal Shakti) ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को सूचित किया था कि मौजूदा नीतियों को लागू करना राज्यों का काम है।