लखनऊ: साल था 2005 UP के पूर्वांचल (Purvanchal) का जिला मऊ। दंगे की आग में झुलस रहा था।
सड़कों पर कहीं सन्नाटा था तो कहीं उन्मादियों की भीड़। पुलिस की गाड़ियों का सायरन कहीं-कहीं सन्नाटों को तोड़ रहा था।
इसी बीच मऊ की सड़कों पर खुली जीप में हथियार लहराते और मूछों पर ताव देते एक माफिया नमूदार हुआ। न प्रशासन का खौफ, न कानून की चिंता यूं लगा वह खुद ‘सरकार’ है। नाम था मुख्तार अंसारी।
प्रदेश में खौफ का पर्याय बनी यह तस्वीर खिंचवाने के कुछ महीनों बाद मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) जेल चल गया।
तो क्या जिले की दीवारों ने मुख्तार के अपराध की रफ्तार रोक ली? इसका जवाब पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) की एक टिप्पणी देती है।
हाईकोर्ट ने कहा, ‘मुख्तार अंसारी गिरोह देश का सबसे खुंखार आपराधिक गिरोह है।’
पिछले 18 साल से सलाखों के पीछे बंद मुख्तार की सत्ता की सरपरस्ती में अपराध की ‘मुख्तारी’ इतनी मजबूत हुई कि आठ राज्यों में उसके अपने अपराध के साम्राज्य का विस्तार कर डाला।
PM Modi ने उठाया था माफिया पर सवाल
2017 के विधानसभा चुनाव में BJP UP की सत्ता में आने और सपा को सत्ता से हटाने के लिए पसीना बना रही थी।
जिस मऊ में मुख्तार के आतंक व सियासी रसूख का जलवा था, वहां PM नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली लगी। Modi ने मंच से कहा, ‘UP में कोई बाहुबली जेल जाता है तो मुस्कुराता हुआ जाता है, ऐसा क्यों है भाई?
ऐसा इसलिए क्योंकि यहां की जेल अपराधियों के लिए महल में बदल दी गई हैं, सारे सुख वैभव उन्हें वहीं मिलते हैं।….देखते हैं, 11 मार्च के बाद जेलों में कैसे रंगीनियत रहती है।
जेल को जेल ही बनाकर रख देंगे।’ जाहिर है निशाने पर मुख्तार का ही रसूख था। 11 मार्च के बाद UP में सरकार बदल गई।
जेल की रंगीनियत रही या गई, इस पर आगे बात करेंगे। पहले यह जान लेते हैं कि करीब 6 साल पहले Modi के दावे और एक महीने पहले High Court की टिप्पणी की जमीन क्या थी?
जेल में सरकारी फोन पर कब्जा
गाजीपुर के मोहम्मदाबाद (Mohammedabad) में एक राजनीतिक परिवार में जन्मे मुख्तार अंसारी पर हत्या का पहला मुकदमा 1988 में मंडी परिषद में ठेकेदारी को लेकर दर्ज हुआ।
इसके बाद मुख्तार के अपराधों की फेहरिश्त और उसके दबदबे का सिलसिला दोनों आगे बढ़ना लगा। 90 के दशक में मुख्तार को जेल जाना पड़ा था और उसका नया ठिकाना बनीं गाजीपुर जेल की सलाखें।
प्रयागराज (Prayagraj) में फरवरी दिल दहला देने वाले वाले उमेश पाल हत्याकांड (Umesh Pal Murder Case) की पूरी साजिश अतीक अहमद ने गुजरात की साबरमती (Sabarmati) और उसके भाई अशरफ ने यूपी की बरेली जेल में बैठकर रची थी।
लेकिन, जेल की सलाखों के पीछे जो रसूख मुख्तार ने जिया है उसके आगे अतीक का जलवा भी फीका ही रहा है।
गाजीपुर जेल (Ghazipur Jail) में 90 के दौर में तैनात रहे एक अधिकारी बताते हैं कि उस समय मोबाइल फोन का चलन शुरू नहीं हुआ था।
बात करने का जरिया लैंडलाइन फोन हुआ करता था। मुख्तार के गाजीपुर जेल पहुंचने के बाद वहां के फोन के बिल का ग्रॉफ (Graph) भी मुख्तार के अपराध की तरह बढ़ने लगा।
बाद में पता चला कि यह बिल जेल अधिकारियों के चलते नहीं बढ़ा था बल्कि जेल का यह फोन मुख्तार के निजी संपर्क के जरिए में बदल गया था।
इस टेलीफोन (Telephone) से वह अपना अपराध का साम्राज्य चला रहा था और उसे रोकने का दम किसी में नहीं था।
कृष्णानंद राय की हत्या
1996 में मऊ सदर सीट से पहली बार विधायक बना मुख्तार अंसारी जेल से बाहर आता जाता रहा। 25 अक्टूबर 2005 को वह अपनी जमानत रद्द कराकर जेल चला गया।
इसके ठीक महीने बाद गाजीपुर से भाजपा विधायक और उसके प्रतिद्वंदी कृष्णानंद राय को गोलियों से भून दिया गया। सौ राउंड से अधिक गोलियां चली थी।
घटना के कुछ दिनों बाद मुख्तार अंसारी का एक Audio Viral हुआ। इसमें वह कृष्णानंद राय की हत्या और उनकी चुटिया काटे जाने के बारे में बता रहा था।
मामले की जांच CBI को गई लेकिन वह मुख्तार और बाकी आरोपितों को कोर्ट में दोषी नहीं साबित कर पाई।