नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस.ए. बोबडे ने मंगलवार को कहा कि अगर किसी समिति के किसी व्यक्ति ने एक मामले पर अपना विचार व्यक्त किया है, तो यह उसके समिति में अयोग्य होने का आधार नहीं बनना चाहिए।
भारत के सीजेआई की ओर से की गई यह टिप्पणी इस समय काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल ही में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों की शिकायतों की सुनवाई के लिए शीर्ष न्यायालय की ओर से गठित चार सदस्यीय समिति से अपना नाम वापस ले लिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने किसानों और सरकार के बीच तकरार खत्म करने के लिए किसानों की शिकायतों की सुनवाई के लिए चार सदस्यीय एक समिति बनाई थी, जिसमें किसान नेता मान का नाम भी था।
हालांकि मान ने किसानों के हितों की बात करते हुए उनके साथ खड़े रहने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित समिति से हटने की घोषणा कर दी।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और विनीत सरन के साथ ही प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, सिर्फ इसलिए कि किसी व्यक्ति ने इस मामले पर विचार व्यक्त किया है, जो कि किसी समिति का सदस्य होने के लिए अयोग्यता का आधार नहीं है।
शीर्ष अदालत की पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब पीठ आपराधिक ट्रायल में तेजी लाने के लिए मामले कि सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के दौरान एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने फिजिकल सुनवाई के बजाय वर्चुअल सुनवाई के पक्ष में अपनी राय का हवाला दिया।
वकील ने स्पष्ट किया कि वर्चुअल सुनवाई को जारी रखने का समर्थन करने वाली दलीलों में उन्हें न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) होने से बाहर रखा जा सकता है।
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यह अयोग्य कैसे हो सकता है।
प्रधान न्यायाधीश बोबडे ने कहा, आमतौर पर, एक समिति के गठन के बारे में समझ की कमी है।
इसके साथ ही सीजेआई ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी केवल तात्कालिक मामले के संदर्भ में नहीं है, बल्कि एक सामान्य अवलोकन है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम एक सामान्य गलतफहमी की बात कर रहे हैं। समिति के सदस्य न्यायाधीश नहीं हैं। वे अपने विचार बदल सकते हैं।
किसान यूनियनों ने अदालत द्वारा नियुक्त समिति की संरचना पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इसके सदस्य पहले कृषि कानूनों के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं।
दिल्ली से लगती विभिन्न सीमाओं पर हजारों किसान कृषि कानूनों के विरोध में 26 नवंबर से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसान तीन कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने पर अड़े हुए हैं।
किसान यूनियनों ने इस समिति के समक्ष आने से भी मना कर दिया है।
शीर्ष अदालत ने 12 जनवरी को अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी और एक समिति का गठन किया था, जिसमें भूपिंदर सिंह मान, प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल घनवंत को शामिल किया गया था।